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गैरकानूनी

५३ नम्बर तक के नियम, इन दोनोंके सहित, काट दिये हैं। ४८ के स्थानपर दूसरा रख दिया है जिससे कि वह गुजरातीके अनुसार हो जाये। इसी तरह संख्या २२ को भी बदला है। मैं नियमावलीकी जो प्रति भेज रहा हूँ उसकी भाषामें तुम यह परिवर्तन ज्यादा अच्छी तरह देख सकोगे। श्री फैन्सीने गुजराती सामग्री में भी कुछ आवश्यक संशोधन किये हैं। तुम उन्हें भी समझ लेना। उसके बाद तुम्हें आगे प्रूफ भेजने की आवश्यकता नहीं है, बस छपाई शुरू कर देना। अंग्रेजीमें मैंने प्रत्येक शब्द ध्यानसे नहीं देखा है परन्तु मैं मानता हूँ कि हिज्जे आदिकी भूलें नहीं होंगी। प्रेस शब्द गुजरातीमें उलटा छपा है। इसका तो संशोधन करना ही चाहिए। हरिलाल और धोरीभाईके लिए पाखानेकी व्यवस्थाके बारेमें, बेशक मेरा यह खयाल है कि यदि हम बारकोंमें रहनेवालोंके लिए ऐसा करते रहे हों तो हमें खाई खोद लेनी चाहिए। मैं नहीं सोचता कि हमें नौकरोंसे कहना चाहिए कि वे खाइयाँ खोद दें। अपने आप वे खोदें तो बात दूसरी है। मुझे ठीक वैसा ही लगा जैसा कि तुमको। तब मैंने तर्क किया और यह फैसला किया। साथ ही, यदि बारकोंमें रहनेवाले अपनी खाइयाँ स्वयं खोद रहे हों तो इसका सहज अर्थ यह है कि तुम सिर्फ ढांचा खड़ा करा दो और हरिलाल तथा धोरी-भाईको खुद खाई खोदने दो। बात यह है कि जैसे हो यह किया ही जाना चाहिए।

मैं श्री लच्छीरामको लिख रहा हूँ। टोंगाटसे गोकुलदासके बारेमें मुझे समाचार नहीं मिला। हरिलालके लिए मेजके बारेमें तुम्हारी राय मैंने जानी। साथ-बन्द गृहस्थीका हिसाब ठीक है. . .[१]ए॰ कुवाडियाका नाम ग्राहकोंकी सूचीसे काट दो। उनका विज्ञापन भी बन्द कर दो, क्योंकि उनका कारवार बैठ गया है। मैं पत्र वापस कर रहा हूँ।

एनाविल्सके कारबारके बारेमें एम॰ के॰ देसाईका पत्र मत छापना। दरअसल उस पत्रकी नकल उन्होंने मुझे दिखाई थी और मैंने उनसे कहा था कि यह पत्र नहीं छप सकता।

तुम्हारा शुभचिन्तक,
मो॰ क॰ गांधी

[संलग्न]
श्री छगनलाल खुशालचन्द गांधी
[फीनिक्स]

टाइप किये हुए मूल अंग्रेजी पत्रकी फोटो नकल (एस॰ एन॰ ४९१२) से।

 

३७५. गैरकानूनी

नेटाल सरकारके गत १९ फरवरीके 'गज़ट' में एक विज्ञप्ति प्रकाशित हुई है, जिसके अनुसार विक्रेता परवाना अधिनियमके अन्तर्गत अपील दायर करनेवालोंसे अदालतके रूपमें कार्य करनेवाले निकाय अथवा परिषदके सदस्योंके सफर खर्चके वास्ते १२-१०-० पौंडकी रकम जमा करना आवश्यक है। चूँकि अभागे भारतीय ही ऐसे होंगे जिन्हें आम तौरपर अपील करनी होगी, अथवा अपीलके प्रहसनसे गुजरना होगा, इसलिए इस नये करसे उनकी कठिनाई और भी बढ़ जायेगी एवं इन्साफ पाना उनकी पहुँचसे बाहर हो जायेगा। यह संकट आने ही वाला है कि अगली बार हमसे न्यायाधीशोंके सफर खर्चकी भी माँग की जायेगी।

  1. यहाँ एक पंक्ति मूलपत्रमें मिटा दी गई है।