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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पर हमें यह कायदा साफ गैर-कानूनी लगता है। कानूनकी जो धारा सरकारको नियम बनानेका अधिकार देती है उससे मनमाने प्रकारके नये बोझ लादनेकी नहीं, महज कार्य-प्रणालीको नियमित करने की सत्ता मिलती है। हमें विश्वास है कि नेटाल भारतीय कांग्रेस अविलम्ब इस कायदेके खिलाफ आवाज उठायेगी[१] और इस दौरानमें हम निर्भयतासे कह सकते हैं कि अपील करनेवालोंको उपर्युक्त विज्ञप्तिके अन्तर्गत उल्लिखित रकम जमा करनेकी जरूरत नहीं है। वस्तुतः अगर हमें सही खबर मिली है तो हालकी अपीलोंमें न तो इस तरहकी रकम जमा करनेकी माँग की गई थी और न वह जमा कराई गई है।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-३-१९०७
 

३७६. अँगुलियोंके वे निशान

हमारे जोहानिसबर्ग के संवाददाताने, यदि सच हो तो, एक बड़ी गम्भीर स्थितिकी ओर हमारा ध्यान खींचा है। जान पड़ता है कि एशियाई अधिनियम संशोधन अध्यादेशके वर्जित या स्थगित हो जानेपर भी, एशियाई विभाग ऐसी कार्यवाही करता जा रहा है, मानो अध्यादेशपर स्वीकृति मिल गई हो। मालूम होता है कि अधिकारी ब्रिटिश भारतीयोंके अनुमतिपत्रों तथा पंजीयनके प्रमाणपत्रोंकी जाँच कर रहे हैं और साथ ही उनकी दसों अँगुलियोंके निशान भी ले रहे हैं। इस जोर-जुल्म भरे कामके लिए कोई मुनासिब सबब नहीं जान पड़ता। हमें अनुमतिपत्रों और पंजीयनके प्रमाण-पत्रोंकी जाँचके खिलाफ कुछ नहीं कहना है। दरअसल हम इसे वाजिब बात समझते हैं और मानते हैं कि यही अकेला जरिया है जिससे उन ब्रिटिश भारतीयों और एशियाइयोंको इस उपनिवेशसे बीन-बीन कर बाहर किया जा सकता है जो बिना अनुमतिपत्रके यहाँ घुस आये हों। मगर जाँच एक बात है और उसकी आड़ में ब्रिटिश भारतीयोंसे उनकी अँगुलियोंके निशान माँगना बिलकुल दूसरी बात है। ब्रिटिश भारतीयोंने महज सद्भावना और समझौतेके विचारसे अपने अँगूठोंके निशान देना कबूल किया है। अधिकारियोंको इससे सन्तुष्ट हो जाना चाहिए। श्री हेनरीने बताया है कि अँगूठोंके निशान यदि ठीक तरहसे लिए जायें तो वे शिनाख्तकी अनमोल कसौटी हैं। इसलिए समाजसे सब अँगुलियोंके निशान देने को कहना उसका अकारण अपमान करना है। इस मामलेमें इतनी तत्परता से कदम उठाने के लिए हम ब्रिटिश भारतीय संघको बधाई देते हैं। हमारे संवाददाताने यह भी सूचित किया है कि ब्रिटिश भारतीय संघने सभी उपसमितियोंको परिपत्र भेजकर अँगुलियोंके निशान देने के विरुद्ध चेतावनी दी है और यह भी सूचना दी है कि ऐसे अपमानजनक नियमका समर्थन करनेवाला कोई भी कानून नहीं है।[२]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-३-१९०७
  1. कांग्रेसने उपनिवेश सचिवसे यह सूचना रद करनेकी प्रार्थना की थी लेकिन प्रार्थना स्वीकार नहीं की गई। देखिए "नेटालका विक्रेता कानून", पृष्ठ ३९९-४००।
  2. गश्ती चिट्टी के सारांशके लिए देखिए "तार : एशियाई पंजीयकको", पृष्ठ ३७१-७२।