पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/४१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३७६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


जिस पक्षने लड़ाईकी थी उसकी पिछले चुनावमें हार हुई। 'उदार' दल जीता और उसने डचों के हाथमें राज्यकी लगाम सौंपनेका विचार किया। उससे आज जनरल बोथा और उनके साथी ट्रान्सवालके मन्त्री हुए हैं। वे अब ब्रिटिश प्रजा हैं। किन्तु ट्रान्सवालमें स्वतन्त्र हैं। जितने डचोंको राज्य-व्यवस्थामें दाखिल किया जा सकेगा, किया जायेगा। गरीब डचोंको मदद देनेकी बात भी हवामें फैल रही है। डच भाषाका मूल्य आज ५० प्रतिशत बढ़ गया है और गाँव-गाँवमें जैसे पहले डच लोग दिखाई देते थे वैसे फिर दिखाई देने लगे हैं। उनका उत्साह बढ़ गया है और वे फिरसे तत्पर हो गये है।

डच लोगोंने हमारे साथ चाहे जैसा बरताव किया हो, किन्तु उन्हें जो कुछ मिला है, हम मानते हैं कि वे उसके योग्य हैं। इसके लिए उन्हें बधाई दी जानी चाहिए। अंग्रेजोंकी उदारताका यह बड़ा उदाहरण है। वे लोग हमारे साथ रहते हैं इसकी हमें प्रसन्नता होनी चाहिए।

इससे हमें सबक भी लेना चाहिए। डच तथा अंग्रेज दोनों हमें किस बातके लिए धिक्काकरते हैं? हम मानते हैं कि उसका गहरा कारण हमारी चमड़ीका रंग नहीं, बल्कि हमारा जनानापन, हमारी नामर्दी, हमारी हीनता है। हम उनके मुकाबलेमें खड़े हो सकते हैं इसका आभास यदि हम करा सकें तो वे तुरन्त हमारी इज्जत करने लगेंगे। इसके लिए उनसे लड़नेकी नहीं, हिम्मतकी जरूरत है। यदि कोई हमें ठोकर मारे तो हम बैठे रहते हैं। इससे सामने-वाला व्यक्ति समझता है कि हम ठोकरके ही लायक हैं। यह हमारा जनानापन है। ठोकर खाकर बैठे रहने में एक प्रकारकी बहादुरी भी है। हम यहाँ उस बहादुरीकी बात नहीं कर रहे हैं। हम लोग जो ठोकर खाकर बठे रहते हैं वह सिर्फ डरके कारण।

जवानीका झूठा घमण्ड करके विषयान्ध होकर हम अपनी मर्दानगी खोते हैं और अपनी औरतोंको बिगाड़ते हैं। यह नामर्दी है। शादीका रहस्य न समझकर हम अन्धे होकर जैसे-तैसे विषय भोग में रत रहते हैं। यह हमारी नामर्दीका नमूना है।

केप में हम अपनी तसवीरें देते हैं, रस्टनबर्ग में हम डरके मारे अपनी अँगुलियोंकी निशानी देते हैं, ट्रान्सवालमें हिम्मत के साथ खुले-आम प्रवेश करने के बजाय, चोरीसे प्रवेश करते हैं, यह हमारी हीनता है।

ये विचार सभीपर लागू नहीं होते, इतना हम समझते हैं। लेकिन ज्यादा लोग इस तरहका आचरण करें तो उसका दोष सारे समाजको भोगना पड़ता है। यह हमारी दशा है। इसलिए हम मानते हैं कि अंग्रेजोंको दोष देनेके बजाय यदि हम अपना दोष देखें तो जल्दी पार लगेंगे और जिन अंग्रेजोंने आज डचोंको राज्यकी लगाम सौंपी है वही अंग्रेज हमें हमारा राज्य सौंप देंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-३-१९०७