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३७९. ट्रान्सवालके भारतीयोंको चेतावनी

रस्टनबर्गके भारतीयोंने हाथकी छाप देकर हाथ कटवा लिये हैं। यह उनके लिए लज्जाजनक है। जबतक लकड़ी कुल्हाड़ीमें नहीं बैठती तबतक कुल्हाड़ी घाव नहीं लगा सकती। इस कहावतके अनुसार अँगुलियोंकी निशानी देनेका प्रारम्भ रस्टनबर्गसे हुआ है। इसलिए यदि भारतीय समाजको नुकसान हुआ तो उसका कलंक रस्टनबर्ग के भारतीयोंपर लगेगा। हमें यह देखकर प्रसन्नता है कि ब्रिटिश भारतीय संघने इस सम्बन्धमें तत्काल कदम उठाये हैं।[१] सरकारके पास इस सम्बन्धमें पुकार की गई है कि उसका वह कदम एकदम गैर-कानूनी मालूम होता है। भारतीय समितियोंने गाँव-गाँव पत्र[२] भेजे हैं; यह कदम भी उचित ही उठाया गया है।

उपर्युक्त उदाहरणके कारण ट्रान्सवालके भारतीय समाजको बहुत सावधानीसे चलना चाहिए। तत्काल जो कार्रवाई की जाये वह संगठित और संघसे पूछकर की जानी चाहिए। अधिकारियोंसे डरकर कुछ करनेकी जरूरत नहीं । डरना किससे और किसलिए? जब विलायत में बहादुर औरतें लड़ रही हैं तो ट्रान्सवालके भारतीयोंको साधारण हिम्मत रखकर लड़ना भारी नहीं लगना चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-३-१९०७
 

३८०. मित्रमें स्वराज्यका आन्दोलन

अखबारोंमें प्रकाशित तारोंसे मालूम होता है कि मिस्रमें स्वराज्य—होम रूल—प्राप्तिके लिए आन्दोलन किया जा रहा है। मिस्रवासी बड़ी-बड़ी सभाएँ करके लॉर्ड कॉमरको[३] भगाकर शासन-सूत्र हाथमें लेने के प्रस्ताव कर रहे हैं। इस सम्बन्ध में लन्दनके 'टाइम्स' समाचार- पत्रने एक सख्त लेखमें कहा है कि इस हलचलपर अंकुश रखना जरूरी है। हमारे विचारमें इस हलचलको बन्द करना सम्भव नहीं है। मिस्त्रियोंमें कुछ लोग बड़े बहादुर हैं। उनमें शिक्षाका काफी प्रसार हुआ है और यह हलचल यदि लम्बे समय तक चलती रही तो हम समझते हैं कि अंग्रेज उन्हें स्वराज्य दे देंगे। अंग्रेज प्रजाके रिवाजके मुताबिक जो माँग की जाये उसके लिए यह बतलाना भी जरूरी है कि लोग अपनी माँगके लिए मरनेको तैयार हैं। मुँहसे 'लाओ-लाओ' करना पर्याप्त नहीं है। यह नियम वे लोग अपने घरमें भी पालते हैं; इसीलिए निभ रही है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-३-१९०७
  1. देखिए "तार : एशियाई पंजीयकको", पृष्ठ ३७० और ३७१-३७२।
  2. ये उपलब्ध नहीं हैं।
  3. कॉमरके प्रथम अर्ल (१८४१–१९१७) मिस्रमें ब्रिटिश महालेखा नियन्त्रक (१८८३-१९०७)।