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३८१. परवानेका मुकदमा

पोर्ट शेप्स्टनका भारतीय परवानेका जो मुकदमा सर्वोच्च न्यायालय में गया था, जान पड़ता है उसमें हमारी हार होगी। फिर भी उससे हमें घबराना नहीं है। उस मुकदमेके द्वारा हम लोग बड़ी सरकारको बता सकेंगे कि परवाना कानूनके आधारपर भारतीय समाजको किसी भी प्रकारसे न्याय प्राप्त न होगा। श्री गोगाके मुकदमेकी[१] जीत तो अनायास मिली मानी जायेगी। न्यायकी अदालत जबतक केवल न्याय न करे तबतक खतरा मानना चाहिए। श्री रेमजे कॉलिन्सने कहा है कि नगर परिषदें न्याय करने योग्य नहीं हैं। हमें सर्वोच्च न्यायालयका मोह नहीं है, परन्तु हम जानते हैं कि वहाँ न्याय मिल सकता है, इसलिए उस न्यायालय में अपील करनेका अधिकार माँग रहे हैं। यदि गोरे उसका विरोध करते हैं तो इसका अर्थ यही हुआ कि वे न्यायसे डरते हैं। इस सम्बन्धमें वास्तविक लड़ाई बड़ी सरकारकी मारफत करनी है। हमारी विशेष राय है कि यहाँके लोगोंको जबतक बड़ी सरकारके दबावका भय नहीं होगा तबतक हमें किसी भी प्रकारकी जीत नहीं मिलेगी और इन लोगोंको हम रिझा नहीं पायेंगे, इस बातको याद रखकर हमें दोनों ओरसे काम लेना चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-३-१९०७
 

३८२. जेम्स गॉडफ्रे

श्री जेम्स गॉडफ्रे विलायतसे शिक्षा लेकर और बैरिस्टर होकर लौटे हैं। उनका हम सम्मान सहित स्वागत करते हैं। यह दिन उनके माता-पिताके लिए बड़े हर्षका और भारतीय समाजके लिए गौरवका है।

श्री गॉडफ्रे और उनकी पत्नीने अपनी सन्तानके लिए जैसा साहस किया, दक्षिण आफ्रिकामें वैसा साहस थोड़े ही माता-पिताओंने किया होगा। उन्होंने अपने लड़के-लड़कियोंको उत्तम शिक्षा देनेके लिए समझ-बूझ कर अपनी सारी सम्पत्ति खर्च कर दी है। इस उदाहरण के अनुसार यदि अधिकतर भारतीय माता-पिता चलें, तो भारतीय समाजके बन्धन तेजीसे छूट सकते हैं। शिक्षाकी बिलकुल आवश्यकता है यह हम सब मानते हैं। लेकिन उस मान्यताके अनुसार चलने में हम पीछे रह जाते हैं।

श्री जेम्स गॉडफ्रे पढ़कर तो लौट आये हैं, किन्तु गुननेका समय अब आ रहा है। शिक्षा तो एक साधन मात्र है। यदि उसके साथ सचाई, दृढ़ता, शान्ति आदि गुणोंका सम्मिश्रण नहीं हो तो वह शिक्षा रूखी रहती है और लाभके बदले कभी-कभी नुकसान पहुँचाती है। शिक्षाका उद्देश्य पैसा कमाना नहीं, बल्कि अच्छा बनना और देश-सेवा करना है। यदि यह उद्देश्य

  1. देखिए "गोगाका परवाना," पृष्ठ ३६५।