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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

सफल न हो तो शिक्षापर किये गये खर्चको बेकार समझ सकते हैं। हम आशा करते हैं कि श्री जेम्स गॉडफ्रे अपनी शिक्षाका सदुपयोग करेंगे और अपने ज्ञानका लाभ भारतीयोंको देंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ९-३-१९०७
 

३८३. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
अनुमतिपत्रका कानून

मालूम हुआ है कि सत्ताधारियोंने गाँव-गाँवमें अनुमतिपत्र जाँचनेका काम शुरू कर दिया है। रस्टनबर्गके भारतीयोंके अनुमतिपत्रोंकी जाँच की गई है। इतना ही नहीं पुलिसने उनकी अँगुलियोंके निशान भी लगवाये हैं। इस तरह अँगुलियोंके निशान लगवाये जानेपर रस्टनबर्गके भारतीयोंने संघसे पूछा तो उन्हें सूचित किया गया है कि किसीको अँगुलियोंके निशान नहीं लगाने चाहिए थे। अँगुलियोंके निशान लगाना ठीक नहीं हुआ। कुछ भारतीयों द्वारा इस प्रकार अँगुलियोंके निशान लगाये जानेकी बातको लेकर सम्भव है शासकवर्ग कहेगा कि भारतीयोंको अँगुलियोंकी छाप देने में कोई आपत्ति नहीं है। इस हकीकतके मालूम होते ही ब्रिटिश भारतीय संघने हर जगह पत्र लिखे हैं। उनमें कहा गया है कि अधिकारी यदि अनुमतिपत्र और पंजीयनपत्र देखनेके लिए आयें तो दोनों दिखला दिये जायें; उसी प्रकार, जाँच करने में अधिकारियोंकी सहायता की जाये और जो जानकारी माँगी जाये वह दी जाये; अँगूठेकी छाप देने को कहें तो दे दी जाये; लेकिन इससे ज्यादा कहें तो साफ इनकार कर दिया जाये; और संघको सूचना दी जाये कि अधिकारी अँगुलियोंकी छाप देनेको कहते हैं। ये चार बातें सारे भारतीयोंको खूब ध्यानमें रखनी हैं।

सरकारको तार[१] भेजा है कि रस्टनबर्ग में जो अँगुलियोंकी छाप ली गई है उसे लोग जुल्म मानते हैं और यह सवाल पूछा गया है कि अँगुलियोंकी छाप किसके हुक्मसे ली गई है। और यह तरीका बन्द होगा या नहीं? ट्रान्सवालके भारतीय समाजको अच्छी तरह याद रखना चाहिए कि अधिकारी जो जाल फैलाते हैं वे उसमें न फँसें।

संघने अधिकारियोंको जो तार भेजा था उसके उत्तरमें संघ से पूछा गया है कि आपत्ति दसों अँगुलियोंकी छाप देनेपर है या अँगूठेकी छाप देनेपर भी? इसके उत्तरमें[२] संघने बताया है कि लॉर्ड मिलनरके साथ जो इकरार किया गया था उसके अनुसार अनुमतिपत्र लेनेके लिए एक अँगूठेकी छाप देने में संघको आपत्ति नहीं है। संघका उद्देश्य अनुमतिपत्रकी जाँच में सरकारकी मदद करना है। किन्तु दसों अँगुलियोंकी छाप देनेसे संघ नाराज है; क्योंकि उससे भारतीय समाजका बेकार अपमान होता है।

  1. देखिए "तार : एशियाई पंजीयकको", पृष्ठ ३७०।
  2. देखिए "तार : एशियाई पंजीयकको", पृष्ठ ३७१-७२।