पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/४१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


ऐसी सभाओंके बाद हमेशा बहुत काम रहता है। उसके आधारपर सरकारको पत्र लिखने पड़ेंगे और समय-समयपर उसे तंग करना पड़ेगा। तार भी भेजने पड़ेंगे। इन सारे कामोंके लिए धनकी आवश्यकता है। हमें याद रखना चाहिए कि इस समय कांग्रेस के पास पैसा बिलकुल नहीं है; सारी रकम बैंकसे उधार ली गई है। इस स्थितिमें बड़ी लड़ाई लेना कठिन है। इसलिए धन इकट्ठा करनेकी आवश्यकता पहली है।

दूसरी आवश्यकता श्री पीरन मुहम्मदने जो चेतावनी दी है उसे याद रखनेकी है। जबतक हम अपने घर-बार साफ नहीं रखते, मुसीबत उठाये बिना हमारे लिए चारा नहीं है। मतलब यह है कि यदि हमें बड़ी-बड़ी सभाएँ करके लाभ उठाना हो, तो जो अन्दरका काम करना है उसे तो करना ही पड़ेगा।

[गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन १६-३-१९०७
 

८७. 'इंडियन ओपिनियन'

कुछ हितैषियोंकी ओरसे सूचना मिली है कि हमें गुजराती विभागमें वृद्धि करनी चाहिए। उनका कहना है कि 'इंडियन ओपिनियन' की कीमत अब लोगोंको मालूम होने लगी है और उसकी सेवाओंकी चेतना भी होने लगी है। इस मतको स्वीकार करके हम इसी समय अधिक पृष्ठ दे रहे हैं, आगेसे बारहके बदले तेरह पृष्ठ देंगे। आशा है इस वृद्धिको प्रोत्साहन मिलेगा। हमें कहना चाहिए कि आज भी 'इंडियन ओपिनियन' की स्थिति ऐसी नहीं है जिससे कार्यकर्ताओंको पूरा वेतन तक दिया जा सके। उनमें देशभक्तिका कुछ-न-कुछ जोश है। इसीलिए यह समाचारपत्र चल रहा है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-३-१९०७
 

३८८. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
अध्यादेशकी नीली पुस्तिका

लॉर्ड सेल्बोर्न और लॉर्ड एलगिनके बीच अध्यादेश के सम्बन्धमें जो पत्र-व्यवहार हुआ था उसकी नीली पुस्तिका छपकर आ गई है। उससे मालूम होता है कि लॉर्ड एलगिनने पहले तो एक पक्षकी बातें सुनकर अध्यादेश स्वीकार कर लिया लेकिन जब उन्होंने विलायत में शिष्टमण्डलकी बातें सुनी, तब उनकी आँखें खुलीं और उन्होंने अध्यादेश रद कर दिया।

किन्तु लॉर्ड सेल्बोर्न अब भी अपनी बातपर अड़े हुए हैं। वे अपने जवाब में लिखते हैं कि लॉर्ड एलगिनने भारतीय शिष्टमण्डलकी बात सुनकर उनके हाथ कमजोर कर दिये हैं। अध्यादेश पास करने के उद्देश्यके सम्बन्ध में लॉर्ड सेल्बोर्न लिखते हैं कि भारतीय समाजके बहुतसे व्यक्तियोंने झूठे अनुमतिपत्रोंके आधारपर प्रवेश किया है। इसके सबूतमें उन्होंने