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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

श्री वर्जेसकी रिपोर्ट दी है। श्री बर्जेसने लिखा है कि उन्होंने स्वयं कुछ भारतीयोंके झूठे अनुमति-पत्र देखे हैं। कुछ तो अँगूठेकी निशानी मिटा देते हैं। इस कथनकी कुछ बातें यद्यपि सही हैं, फिर भी इसका अर्थ यह होता है कि गलत तरीकेसे लोग प्रवेश नहीं कर सकते और यदि वे प्रवेश करना चाहें तो उन्हें रोका जा सकता है। इसके अलावा लॉर्ड सेल्बोर्नके पत्रमें और भी कुछ जानने योग्य बातें हैं। किन्तु हम उन्हें बादमें देखेंगे।

इस पुस्तिकापर 'लीडर' और 'स्टार' ने टीका करते हुए लिखा है कि चाहे जो हो, भारतीय समाजका पंजीयन किया जायेगा; और 'लीडर' तो यहाँतक लिखता है कि गोरे लड़कर भी अपनी मुराद पूरी करेंगे। संघने नीली पुस्तिकाका जवाब देनेकी तैयारी की है।

'अनुमतिपत्रका मुकदमा

झूठे अनुमतिपत्रों के सम्बन्धमें कभी-कभी जोहानिसबर्ग में मुकदमे दायर होते रहते हैं। अभीअभी कुछ लोग पकड़े गये हैं। उन्हें देश छोड़कर जानेकी हिदायत की गई है। इस प्रकारसे आनेवाले लोगोंके कारण दूसरे भारतीयोंको बहुत कष्ट भोगने पड़ते हैं।

जनरल बोथा और उनके मन्त्री

जनरल बोथा और उनके मन्त्रियोंको प्रिटोरियाके लोगोंने भोज दिया था। उसमें अनेक बड़े-बड़े लोग उपस्थित थे। जनरल बोथाने अपने भाषण में ब्रिटिश जनताका आभार माना और स्वीकार किया कि अंग्रेजोंने राज्यकी बागडोर बोअर लोगोंके हाथ देकर बड़ी उदारता बरती है। इससे निश्चय ही डच लोग सम्राट् एडवर्डकी वफादार प्रजा बनकर रहेंगे। जनरल बोथाने यह भी कहा कि ट्रान्सवालका नाम बहुत प्रख्यात हो गया है। अब लोगोंको चाहिए कि उन बातोंको भूल जायें, ताकि देशकी समृद्धिके लिए कदम उठाये जा सकें। बोअर लोग स्वयं सुखसे रहना और दूसरेको सुखसे रखना चाहते हैं। वे काफिरोंपर न्याय-दृष्टि रखेंगे और खान-मालिकोंको परेशान नहीं करेंगे। उनके लिए डच और अंग्रेज, एवं डच भाषा और अंग्रेजी भाषा एक समान हैं।

यह भाषण उदार एवं सौम्य है। यदि इसीके अनुसार आचरण किया गया तो डच मन्त्रिमण्डलके कार्यकालमें सब सुखसे रह सकेंगे।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १६-३-१९०७

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