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एशियाई कानून संशोधन अध्यादेश

जायेगा। उन शर्तोंमें एक यह है कि मलायी बस्तीके निवासियोंको यदि परिषद निकाल दे तो उन्हें दूसरी योग्य जगह दे और उनके बनाये हुए मकानोंके बदले पंचों द्वारा निश्चित मुआवजा दे।

इस शर्तका अर्थ यह हुआ कि बहुत वर्षोंसे लोग जिस जमीनको अपनी माने बैठे हैं उन्हें उस जायदादका मुआवजा कुछ नहीं मिलेगा। सिर्फ मकानोंकी आज जो कीमत निश्चित की जायेगी उतना ही दिया जायेगा। अर्थात् ५० पौंडसे १५० पौंड तक रकम प्राप्त होगी। इस सम्बन्धमें मलायी बस्ती समितिको आजसे हलचल शुरू करनी चाहिए। सम्भव है, कुछ समयमें ही परिषद और सरकारके बीच इकरारनामोंपर हस्ताक्षर हों।

अनुमतिपत्र

ट्रान्सवालमें जो लोग अभी रह रहे हैं, जिनके पास पुराने पंजीयनपत्र हैं, और जो लड़ाई शुरू होनेके ऐन पहले ट्रान्सवाल छोड़कर चले गये थे, उन लोगोंको अनुमतिपत्रोंके लिए अर्जी देनेकी अवधि बहुत कम रह गई है। मार्च ३१ के बाद किसीकी अर्जी पर सुनवाई नहीं की जायेगी, यह याद रखना है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-३-१९०७
 

४००. एशियाई कानून संशोधन अध्यादेश

इस अध्यादेशके फिरसे ट्रान्सवाल-संसदमें स्वीकृत होने का मौका आ गया है। यह भी प्रायः अक्षरशः वैसा ही है जैसा पिछला अध्यादेश था, जो रद हो चुका है। यूरोपके लोगोंकी बहादुरीका यह नमूना है। वे लोग जिस कामको हाथ में लेते हैं उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। हम लोग केवल आरम्भ-शूर माने जाते हैं। यह सच्ची कसोटीका समय है। यदि ट्रान्सवालके भारतीय जेल जानेके लिए तैयार हों, तो कतई डरना नहीं है। बड़ी सरकार अब उस कानूनको रद करेगी या नहीं, यह हम नहीं कह सकते। इस अवसरपर हम प्रत्येक भारतीय पुरुषको सलाह देते हैं कि वह अंग्रेज महिलाओंके महान कार्यका स्मरण करे। तर्ककी अपेक्षा कार्यकी अधिक आवश्यकता है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २३-३-१९०७