क्योंकि उनकी बहुत बड़ी माँग अवश्यम्भावी है। तुम चालू अंककी भी लगभग २ दर्जन प्रतियाँ और भेज सकते हो। मैंने हेमचन्दको हिदायत दी है कि वह यहाँ आनेवालोंसे प्रतियाँ पहुँचाने के वादेपर चन्दे स्वीकार कर ले। यदि वे बेची नहीं जा सकेंगी तो मैं उन्हें रखूँगा। फिलहाल तुम्हें इस बातका ध्यान रखना चाहिए कि जितनी प्रतियोंकी माँग होती है, उनसे तुम १०० या २०० प्रतियाँ ज्यादा छापो। आगामी सप्ताहकी माँगमें तुम्हें २०० प्रतियाँ अवश्य ही शामिल करनी चाहिए।
तुम्हारा शुभचिन्तक,
मो॰ क॰ गांधी
- टाइप किये हुए मूल अंग्रेजी पत्रकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ४७२४) से।
४०५. ट्रान्सवाल भारतीयोंकी आम सभा के प्रस्ताव[१]
[जोहानिसबर्ग
मार्च २९, १९०७]
[प्रस्ताव—१][२]
ब्रिटिश भारतीय संघ के तत्त्वावधान में आयोजित ब्रिटिश भारतीयोंकी यह सभा नम्रता-पूर्वक नई ट्रान्सवाल संसद द्वारा एशियाई कानून संशोधन विधेयक पास किये जानेका विरोध करती है, क्योंकि उक्त विधेयक अनावश्यक और ब्रिटिश भारतीय समाजको अपमानित करनेवाला है।
[प्रस्ताव—२][३]
ब्रिटिश भारतीय संघ के तत्त्वावधान में आयोजित ब्रिटिश भारतीयोंकी यह सभा भारतीयों के गैरकानूनी रूपसे बड़े पैमानेपर आनेके दोषारोपणको नामंजूर करती है और शासन तथा जनताके पूर्वग्रहके संतोष के लिए जिस प्रकारका स्वेच्छापूर्वक पंजीयन १९०४ में लॉर्ड मिलनरकी सलाहपर किया गया था उस प्रकारका पंजीयन अध्यक्षके भाषण में चर्चित ढंगसे करानेको तैयार है। इस प्रकार व्यवहारतः, विधेयककी सारी जरूरतें उसके सन्तापजनक स्वरूपके बिना ही पूरी हो जायेंगी।
[प्रस्ताव—३][४]
यदि प्रस्ताव २ में पेश नम्र विचार स्थानीय सरकारके द्वारा स्वीकृत न किया जाये तो इस तथ्यकी बिनापर कि ब्रिटिश भारतीयोंका विधानसभा के सदस्योंके चुनावमें कोई हाथ
- ↑ ये प्रस्ताव मार्च २९, १९०७ की सार्वजनिक सभामें पास किये गये थे। इस सभा में ट्रान्सवालके सभी अंचलोंके प्रतिनिधि उपस्थित थे। प्रस्तावोंके मसविंदे, अनुमानतः, गांधीजीने तैयार किये थे।
- ↑ यह प्रस्ताव हाजी वजीर अलीने रखा था।
- ↑ पॉचेफस्ट्रम के अब्दुल रहमान द्वारा प्रस्तावित।
- ↑ जोहानिसबर्ग के नादिरशाह ए॰ कामा द्वारा प्रस्तावित।