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४१६. ट्रान्सवालकी आम सभा[१]

ट्रान्सवालके भारतीय सैकड़ोंकी संख्या में तारीख २९ को जोहानिसबर्ग में इकट्ठे हुए और उन्होंने कुछ प्रस्ताव पास किये। सारा काम सकुशल सम्पन्न हुआ। इसके लिए ब्रिटिश भारतीय संघ धन्यवादका पात्र है। लेकिन सभाएँ करके लोग बैठे रहें यह परिस्थिति नहीं है। जबरदस्त टक्कर लेना प्रत्येक भारतीयका कर्तव्य है। हमें याद रखना चाहिए कि यह प्रश्न केवल ट्रान्स- वालका ही नहीं है। यदि विधेयक पास हो जाये तो क्या करना चाहिए, इसपर हम विचार करें। इस बारकी आम सभामें जेलका प्रस्ताव पास नहीं किया गया, इससे कोई यह न मान ले कि जेलका विचार छोड़ दिया गया है। जेलके सिवा और कोई उपाय रहा ही नहीं। और यदि भारतीय समाज इस विचारपर अटल रहेगा तो चारों ओरसे लाभ ही लाभ होनेवाला है। यदि अध्यादेश स्वीकृत हो जाता है तो भारतीयोंको गाँव-गाँवमें सभा करके सरकारको दिखा देना होगा कि वे पास निकलवाने के बदले जेल जायेंगे। इसके लिए आजसे तैयारी करने में हम बुद्धिमानी समझते हैं और इसलिए जो लोग जेल जानेके लिए तैयार हों, वे यदि हमें पत्र लिखें, तो हम उनके नाम और पते प्रकाशित करेंगे। ऐसा करना आवश्यक है; क्योंकि इससे एक-दूसरेको बल मिलेगा और नाम प्रकाशित होने से सरकार भी चौंकेगी। जो नाम प्राप्त होंगे, उन्हें अंग्रेजीमें भी प्रकाशित करने का हमारा विचार है।

नेटाल और केप उपनिवेशके भारतीयोंका इस समय क्या कर्तव्य है, यह हम समझा चुके हैं।[२] उन्हें अविलम्ब सभा करके सहानुभूतिके प्रस्ताव पास करने चाहिए तथा उन प्रस्तावोंको [अधिकारियोंके पास] विलायत भेजना चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ६-४-१९०७
 

४१७. नेटालका परवाना कानून

हार्डिंगमें जो जीत हुई है उसे हम जीत नहीं मानते। बेचारे प्रार्थीको साझेदारीका इकरारनामा तोड़ना पड़ा, तभी उसे परवाने का हुक्म मिला। इसे न्याय नहीं कह सकते। अपील न्यायालयने आज यह माँगा, कल इससे और भी अधिक माँगेगा; और वह दिया जायेगा तभी परवाना मिलेगा। यह तो इसीलिए हो सकता है कि बोर्डको अशोभनीय सत्ता प्राप्त है। हार्डिंगके मुकदमेंसे यह साफ सिद्ध होता है कि नेटालमें परवाना कानूनके विरुद्ध अभी और लड़ाई लड़ना जरूरी है।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ६-४-१९०७
  1. सम्पूर्ण विवरण के लिए देखिए "ट्रान्सवालके भारतीयोंकी विराट सभा", पृष्ठ ४११-२३।
  2. देखिए "केप तथा नेटाल (के भारतीयों) का कर्तव्य", पृष्ठ ४०२-३।