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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

गोरे और गेहुँएँ

एक ओर २,५०,००० गोरे हैं। उन्हें सब राजकीय अधिकार हैं। वे बिला नागा हर महीने आते रहते हैं जिससे उनकी संख्या बढ़ती जा रही है। दूसरी ओर १४,००० भारतीय हैं। उनमें, कहा जाता है, प्रति माह १०० भारतीय बढ़ते हैं। ऊपर लिखे अनुसार सभी प्रकारसे प्रबल दीखनेवाले गोरोंकी रक्षाके हेतु बिना अनुमतिपत्रके आनेवाले भारतीयोंको रोकने के लिए यह कानून पास किया गया है। इस प्रकारका काम करने-वाले तो निश्चित ही ऐसे लोग होने चाहिए जिनके मन हमारे प्रति तिरस्कारसे ओत-प्रोत हैं। साधारणतः यह कानून तीन महीने तक लोगोंके सामने विचारके लिए रहता, किन्तु इससे ढाई लाख गोरे लोगोंके हकोंकी रक्षा करनेवाले कानून के हिमायतियोंको ट्रान्सवालमें और भी तीन सौ भारतीयोंके घुस आने का खतरा उठाना पड़ता।

नई संसद कैसी?

अपने विधायकोंको मैं जान-बूझकर केवल गोरोंके हकोंके रक्षक मानता हूँ। विधानसभा के सदस्य तो साफ ही वैसे हैं। यह माना जाता है कि विधान परिषद काले लोगोंके विरुद्ध बननेवाले कानूनोंको रोकनेके लिए बनाई गई है। और कुछ सदस्योंने कहा भी है कि इस विधेयकका वाचन एक रातके लिए स्थगित रखने की मांग इसलिए की गई कि उनपर उपर्युक्त जिम्मेदारी है। किन्तु मुझे खेदके साथ कहना चाहिए कि वह तो केवल बहाना था। जिस विधेयकके बारेमें यह स्वीकार किया जा चुका है कि वह अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और उलझनोंसे भरा हुआ है उससे सदस्य लोग एक रातमें कैसे परिचित हो सकते हैं? परिषद जिन लोगों के हकोंकी रक्षाके लिए नियुक्त हुई है उनकी भावनाओं और विचारोंको एक रातमें किस प्रकार जान सकती है? यदि परिषदके सदस्योंका चुनाव हमने किया होता, तो क्या वह ऐसी लापरवाहीसे विधेयक स्वीकार कर सकती थी? हम लोगोंने अपना पक्ष प्रस्तुत करनेके लिए विचार स्थगित रखनेकी जो विनम्र माँग की थी उसका अनादर क्या वह कर सकती थी? ऐसा कहने में मैं गलतीपर नहीं हूँ, यह सिद्ध करनेके लिए मैं इस विधेयकके निर्माता माने जानेवाले श्री कटिसके शब्द यहाँ उद्धृत करता हूँ। उन्होंने कहा : "यद्यपि इस विधेयकके आने से मुझे प्रसन्नता है, फिर भी श्री मार्टिनने जो इसे एक रातके लिए स्थगित रखनेकी माँग की उसका मैं समर्थन करता हूँ। यदि पहले ही दिन बिना कुछ कहे दोनों सभाओंमें यह विधेयक पास हो जाये तो हम अपने विरोधियोंके हाथोंमें एक जबरदस्त हथियार सौंप देंगे। लॉर्ड एलगिनने इस विधेयकको नामंजूर किया, इसका कारण इसका उद्देश्य नहीं, बल्कि इसकी कुछ धाराएँ थीं। कितने सदस्य कह सकेंगे कि उन्होंने इस विधेयककी धाराओंको अच्छी तरह पढ़ा है? यह विधेयक अत्यन्त आवश्यक और गम्भीर है। यह देश गोरोंका रहेगा या कालोंका, यह प्रश्न इस विधेयकसे उत्पन्न होता है?"

भारतीय विचार नहीं करते?

अपना मत विधेयकके पक्षमें देते हुए श्री परचेसने कहा कि हम भारतीय एक ही पहलू देखते हैं। गोरोंके हित नहीं देखते। उन्होंने यह भी कहा है कि हमारे अंग्रेज मित्र उपनिवेशकी परिस्थितिसे परिचित नहीं हैं। यों कहकर श्री परचेसने हमारी और हमारे