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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं मानते। ऐसी परिस्थितिमें अनुमतिपत्र जाँचनेवाला अधिकारी जो लालचमें फँस जाता है, उसे लालच में पड़नेका कभी अवसर ही नहीं मिलना चाहिए।" पूर्वके लोगोंकी रिश्वत देनेकी आदतके विषयमें मैं कुछ नहीं जानता। किन्तु इतना तो जानता हूँ कि छोटेसे-छोटा भारतीय भी समझता है कि रिश्वत देना अच्छा काम नहीं है। मुझे उन महोदयको यह याद दिला देना चाहिए कि १९०३ में जोहानिसबर्ग में एशियाई कार्यालय के अधिकारी रिश्वत लेते थे, और ब्रिटिश भारतीय संघकी कोशिशसे वे अधिकारी पकड़े गये और उन्हें अलग कर दिया गया था।

क्या विधेयक भारतीयोंके लिए लाभप्रद है?

लॉर्ड सेल्बोर्न कहते हैं कि यह विधेयक भारतीय समाजके लिए लाभदायक है। परन्तु हमने सिद्ध कर दिया है कि इस विधेयकके द्वारा भारतीय समाजको कुछ भी लाभ नहीं होता। मतलब यह कि बढ़ा-चढ़ाकर बात करनेका जो आरोप हमपर लगाया जाता है वह हम उनपर लगा सकते हैं। वे कहते हैं कि हमारा यह कथन अनुचित है कि विधेयकसे काफिरोंकी तुलनामें हमारी हालत हलकी हो जाती है। मैं फिर दोहरा कर वही बात कहता हूँ। काफिरोंको हमारी तरह पास नहीं लेना पड़ता। काफिरोंको अपने बालकोंका पंजीयन नहीं कराना पड़ता।

सर लेपेलपर आरोप

फिर उन्होंने सर लेपेल ग्रिफिनपर भी आरोप लगाया है तथा पत्नी और बच्चोंके लिए पास निकलवानेके सम्बन्धमें उन्होंने जो बात कही उसपर टीका की है। किन्तु श्री गांधीने सर लेपेलकी एक छोटी-सी भूल उसी समय सुधार दी थी[१], इस बातको वे बिलकुल पचा गये हैं। बच्चोंका पंजीयन करवाना है इसमें तो कोई शक है ही नहीं। बल्कि यह भी जान लेने की बात है कि यदि ट्रान्सवाल सरकारका वश चलता तो वह औरतोंका भी पंजीयन करती।

क्या बहुतेरे भारतीय बिना अनुमतिपत्रके आते हैं?

लॉर्ड सेल्बोर्नके लेखोंसे और बहुत-सी बातें उठती हैं, किन्तु उनका विवरण मैं यहाँ नहीं दे सकता। फिर भी मुझे एक बात यहाँ कह देनी चाहिए। लॉर्ड सेल्बोर्नने जो प्रमाण यह सिद्ध करनेके लिए दिये हैं कि बहुतेरे भारतीय झूठे अनुमतिपत्रोंसे आते हैं, वहीं प्रमाण हम उससे उल्टी बात सिद्ध करनेके लिए देते हैं; क्योंकि साबित हो चुकनेवाले जिन अपराधोंको वे हमारे खिलाफ पेश कर रहे हैं, वही अपराध यह बताते हैं कि मौजूदा अनुमतिपत्र भी झूठे अनुमतिपत्रवालोंको पकड़नेके लिए काफी हैं। लॉर्ड सेल्बोर्नके समक्ष जिन लोगोंने तथ्य रखे हैं उन्होंने झूठे अनुमतिपत्रोंसे आ चुकनेवाले तथा झूठे अनुमतिपत्रों द्वारा आनेकी कोशिश करनेवाले लोगोंके बीचका भेद ध्यानमें नहीं रखा। और उन्हें ट्रान्सवालकी रंग-भेदकी हवामें झूठे अनुमतिपत्रका एक किस्सा सौ किस्सोंके बराबर मालूम हो रहा है। सितम्बर २७ के अपने प्रतिवेदनमें श्री चैमनेने कहा है कि "पिछले छ: महीनोंमें झूठे अनुमतिपत्रवाले या बिना अनुमतिपत्रवाले २८७ लोग देखने में आये। उनमें से १६५ का अपराध सिद्ध हुआ है और १२२ अभी उपनिवेशमें हैं,

  1. देखिए "शिष्टमण्डल : लॉर्ड एलगिनकी सेवामें", पृष्ठ १२०।