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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लागू होनेवाला कानून बहुत कष्ट देता है। उस कानून के परिणामस्वरूप अन्य कानून बनाये जाते हैं। इतना मैं स्वीकार करता हूँ कि इस विधेयकसे कोई और भी सख्त कानून बने सो सम्भव नहीं। परन्तु इससे हमें कोई राहत नहीं मिलती। एक ही वर्गपर लागू होनेवाले कानूनोंसे कष्ट पहुँचानेका इरादा न हो, फिर भी बहुत कष्ट भोगना पड़ा है, इसके मैं उदाहरण दे सकता हूँ। बोअर राज्यमें १८८५ का कानून [३] आजके समान सख्तीसे अमल में नहीं लाया जाता था। यही नहीं, सर हर्क्युलिस रॉबिन्सन [बादमें लॉर्ड रोजमीड] ने यह शर्त तक रखी थी कि वह व्यापारी-वर्ग जैसे प्रतिष्ठित भारतीय समाजपर लागू नहीं होगा। परन्तु लॉर्ड रोजमीडके विचार उनके पास ही रह गये और कानूनका जैसा अर्थ होता है वैसा ही हमपर लागू हुआ। इस विधेयकके द्वारा राज्यकर्ताओंको इतनी अधिक सत्ता दी गई कि यदि राज्यकर्ता कठोर हृदयके हों, तो इससे भयानक अत्याचार हो सकता है।

नेटालका उदाहरण

नेटालमें व्यापारी कानून यद्यपि काले-गोरे सभीपर लागू होता है फिर भी उसने [काले लोगोंके लिए] बड़ा अत्याचारी रूप ले लिया है; क्योंकि उसमें भी कानूनका अर्थ एक होता है और उसके सम्बन्धमें वचन दूसरे ढंगसे दिये गये थे। खयाल यह था कि पुराने व्यापारियोंके अधिकारोंमें हस्तक्षेप नहीं किया जायेगा। वह खयाल खत्म हो गया और कानूनपर अमल आज इस प्रकार हो रहा है कि कोई भारतीय व्यापारी अब सुरक्षित नहीं कहा जा सकता। यही भय केपमें फैला हुआ है। लड़ाईके बाद हमें भी वचन दिये गये थे, किन्तु वचनोंके सिवा हमें कुछ नहीं मिला। इसलिए हमें समझ लेना चाहिए कि यह विधेयक हमें मृत्युके किनारेपर ला छोड़ता है।

अँगूठा दिया तो अँगुलियाँ क्यों नहीं?'

हमसे कहा जाता है कि जब हम खुशीसे अँगूठा लगा आये तब अब जबरदस्तीसे दस अँगुलियाँ क्यों नहीं लगायेंगे? इस प्रश्नका अर्थ यह होता है कि मानो हमारी लड़ाई केवल अँगुलियों अथवा अँगूठेकी ही है। हमारी लड़ाई तो बहुत बड़ा प्रश्न पैदा करती है। दूसरी ओरसे सोचनेपर हम देखते हैं कि हम स्वेच्छासे बहुतेरे काम करते हैं और उनमें कुछ अपमान नहीं मानते। किन्तु उन्हीं कामोंको अनिवार्य कर दिया जाये तो हम बिलकुल नहीं करेंगे। अनिवार्य पंजीयनके कानूनको हमें बिच्छूके डंकके समान समझना चाहिए। परन्तु हमारी दलीलोंसे गोरे लोग कुछ समझनेवाले नहीं हैं। उन्हें यह हम है कि हम इस उपनिवेशमें भारतीयोंको जबरदस्ती ठूंस देना चाहते हैं। श्री रॉय मानते हैं कि हमारी इस प्रकारकी इच्छा होना स्वाभाविक है। परन्तु हम तो इसे मानने से इनकार करते हैं। श्री स्मट्सने कहा है कि इस विधेयकके दो उद्देश्य हैं। एक तो यह है कि साधिकार भारतीयोंको अनधिकार भारतीयोंसे अलग करना और दूसरा यह कि अनुमतिपत्रके बिना आइन्दा जो भारतीय ट्रान्सवालमें प्रविष्ट हों उनको खोज निकालनेके लिए साधिकार निवासियोंको और भी विस्तृत जानकारी देनेवाला अनुमतिपत्र देना। यह सब वर्तमान कानूनोंके द्वारा भारतीय समाजकी सम्मतिसे शीघ्रता एवं सुगमतासे हो सकता है। हमने सदैव सरकारको सहायता देना स्वीकार किया है, और