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ट्रान्सवालके भारतीयों की विराट सभा


:कानून पास करने की अपेक्षा सरकारके लिए उचित है कि वह हमें इस देशसे निकाल दे।

श्री ईसप मियाँ

श्री अली द्वारा पेश किये गये प्रस्तावका मैं समर्थन करता हूँ। हम सब लोग उचित समयपर एकत्र हो सकते हैं, यह प्रसन्नताकी बात है। मैं मानता हूँ कि लॉर्ड सेल्बोर्न आरम्भसे ही हमारे हितैषियोंमें नहीं हैं। उन्होंने हम सबको 'कुली' के समान माना और अब टिड्डीके समान समझते हैं। हमारे नामपर डचोंके साथ उन्होंने युद्ध किया। अब उन्हीं डचोंको राज्य वापस सौंप दिया। उन लोगोंने यह विधेयक फिर पास किया। लॉर्ड एलगिनने जिस विधेयकपर एक बार हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, क्या उसी विधेयकपर वे अब हस्ताक्षर करेंगे? हमें पूरी लड़ाई करनी है। विलायत में हमारे प्रति अच्छी भावना है इसलिए हम वहाँ सुनवाई की आशा करते हैं। हमारे अनुमतिपत्रोंपर श्री चैमने चाहें तो भले अपना अँगूठा लगायें। फिर उस अँगूठेको कौन मिटा सकेगा? यहाँकी सरकार हमारे तार तक नहीं भेजती, इससे पता चलता है कि हम लोगोंकी यहाँ सुनवाई नहीं होगी। यह कानून ऐसा है कि हम इसे कभी स्वीकार नहीं कर सकते।

श्री कुवाड़िया

मैं भी श्री अलीके प्रस्तावका समर्थन करता हूँ। सामना करना हमारा कर्तव्य है। अध्यादेश इतना खराब है कि मैं सबसे विनयपूर्वक कहता हूँ कि उसे किसीको भी स्वीकार नहीं करना चाहिए।

श्री हाजी हबीब

मैं इस प्रस्तावका समर्थन करता हूँ । विलायत में अध्यादेशको स्वीकृति नहीं मिली, इस कारण सेल्बोर्न साहबको दुःख है। क्योंकि, वे मानते हैं कि इसके अभाव में वे मुट्ठी-भर गोरोंको दिया हुआ वचन पूरा नहीं कर सकते। किन्तु युद्धसे पहले भारतीय समाजको दिया हुआ वचन पूरा नहीं कर रहे हैं, इस बातका उन्हें दुःख नहीं हो रहा है क्या? मुट्ठी-भर गोरोंको दिया हुआ वचन अच्छा या तीस करोड़ भारतीयोंको दिया हुआ वचन अच्छा? फिर लॉर्ड सेल्बोर्नका वचन अधिक वजनदार है या स्वर्गीया महारानी विक्टोरिया और सम्राट् एडवर्डका? गोरे कहते हैं कि यह देश केवल उन्हींका है। अब हम इसपर विचार करें। [उपनिवेशमें] लगभग एक लाख भारतीय हैं[१], पचास लाख आफ्रिकी हैं, शेष मलायी और केप बॉय हैं। इन सबका देश-निकाला हो तभी यह देश गोरोंका कहलायेगा। भले ही वे सिद्दियोंको अबीसीनिया भेज दें, हमें भारत, चीनियोंको चीन, मलायियोंको उनके देशमें और केप बॉएजको सेंट हेलेनामें। तब जरूर यह देश गोरोंका कहलायेगा। तब हम देख सकेंगे कि यह देश कैसे चलता है। इस कानून सम्बन्धी लड़ाई अथवा किसी भी लड़ाईके समय हमें हमेशा तीन वस्तुओंकी आवश्यकता होती है—लड़ने-वाले, लड़नेका साधन पैसा, और एकता। पहली वस्तु हमारे पास है। दूसरी हम पैदा कर सकते हैं। तीसरी यानी एकताकी कमी है। इसे, चाहे जिस तरह, हमें पैदा करना चाहिए।
  1. उपनिवेशमें भारतीय आबादी की गणना और अनुमतिपत्र कार्यालयके ऑकड़ोंके लिए देखिए "भेंट : 'ट्रिब्यून' को", पृष्ठ १।