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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
गया था उसकी याद मैं आप सबको दिलाता हूँ। वह नाटकघर तो जल गया, परन्तु उसके शब्द कायम ही हैं। यदि उसके अनुसार जेल न जा सकें, तो हमें इस देशको छोड़ देना चाहिए, परन्तु इस कानूनके मुताबिक पास निकलवा कर गुलामी स्वीकार नहीं करनी चाहिए। बनारसकी कांग्रेस में मैं उपस्थित था। उस समय लाला लाजपतरायने बंगालियोंको सिंह कहा था। हमें भी वैसा ही करना है।

इस प्रस्तावका समर्थन सर्वश्री ई॰ एम॰ पटेल, ए॰ देसाई, उमरजी साले, अहमद मुहम्मद, तथा ए॰ ए॰ पिल्लेने किया और यह सर्वसम्मतिसे स्वीकृत किया गया।

चौथा प्रस्ताव

यह सभा अध्यक्षको अधिकार देती है कि वे उपर्युक्त प्रस्ताव स्थानीय सरकार, उपनिवेश सचिव, भारत-मन्त्री और वाइसरायको तारके द्वारा भेज दें।

इमाम अब्दुल कादिर

आजादी (स्वतन्त्रता) सबसे श्रेष्ठ है। इस्लाम फैला, वह आजादीसे। जंजीबारमें गुलामीका अन्त करवाने के लिए अंग्रेज सरकार जोरोंसे लड़ी। वही सरकार क्या हमारे लिए यहाँ गुलामी देने का निर्णय करेगी? लॉर्ड सेल्बोर्न हमें घूसके विषयमें फटकारते हैं। यूरोपीय अधिकारी यदि घूस न लेते और न्याय करते तो उन्हें घूस कौन देता? बड़ी सरकारने जिन्हें [हमारे] न्यासीके रूपमें भेजा है वे हमको गुलामी देना चाहते हैं। मैं तो उसे कभी भी लेनेवाला नहीं हूँ।

श्री उस्मान लतीफ

बहुत समय से हम इस सम्बन्ध में सभाएँ करते रहे हैं। हमें साहस रखनेकी जरूरत है। ट्रान्सवालमें गोरे गरीब हैं, इस बातका दोष हमें दिया जाता है। परन्तु ऑरेंज रिवर कालोनी में गोरे दिवाला निकालते रहते हैं, उसका क्या? वहाँ तो भारतीय नहीं हैं। हमने बहुत बार पंजीयन कराया। क्या निरन्तर पंजीयन ही कराया करेंगे? गोरे स्वीकार करते हैं कि जब उनके बाप-दादे जंगली थे तब हम सभ्य थे। ऐसे लोगोंकी प्रजा होनेपर क्या हम इस कानूनको सहन कर सकेंगे?

श्री मणिभाई खंडुभाई

दुनियामें सब जीता जा सकता है, किन्तु हमारे मनको दूसरा व्यक्ति नहीं जीत सकता। चाहे कितना ही दुःख उठाना पड़े, उसे सहन करके हम लोगोंको इस कानूनका विरोध करना है। मुझको तो यह कानून कभी मान्य न होगा।

श्री बोमनशाह तथा श्री बापू देसाईने भी उपर्युक्त प्रस्तावका समर्थन किया। फिर वह सर्वसम्मति से स्वीकृत हो गया।

दूसरे प्रस्तावका अर्थ

श्री अब्दुल रहमानने कहा कि दूसरे प्रस्तावको बहुत लोगोंने समझा हो, ऐसा नहीं लगता। उन्हें यह मालूम हो रहा है कि उस प्रस्ताव और विधेयकमें कोई अन्तर नहीं है। इसका उत्तर देते हुए श्री गांधीने कहा :