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ट्रान्सवालके भारतीयोंकी विराट सभा


दूसरा प्रस्ताव बहुत ही गम्भीरतापूर्वक विचार करके तथा नेताओंकी स्वीकृति के बाद पेश किया गया है। फिर भी इसकी जिम्मेदारी मैं ही अपने सिर लेता हूँ। मुझे लगता है कि पहले हमने लॉर्ड मिलनरको सलाहके अनुसार अनुमतिपत्र बदलवाये और पंजीयन करवाया, इसलिए विलायत में शिष्टमण्डल सफल हो सका था। यदि उस समय हमने हठ किया होता तो हमारी परिस्थिति तभी बिगड़ जाती। लॉर्ड मिलनरने 'टाइम्स' में हम लोगोंके पक्षमें पत्र लिखा है। उसका कारण मैं यही समझता हूँ कि विलायत में शिष्ट-मण्डलने उनके पास जो जानकारी प्रस्तुत की थी, वह उनकी समझमें आ गई थी। जिस प्रकार हम अपने अधिकारोंकी माँग बहुत जोशके साथ करते हैं, हमपर किये जानेवाले आक्षेप गलत होनेपर उनको अस्वीकार करते हैं, उसी प्रकार जब हमें अपना दोष दिखाई दे तब हमें उसे स्वीकार करना चाहिए। गोरे लोग कहते हैं उतने भारतीय यहाँ गलत ढंगसे नहीं आ रहे हैं। फिर भी इतना तो हमें स्वीकार करना ही चाहिए कि कुछ भारतीय उस तरीकेसे आते हैं। इस प्रकारके मामले जितने अधिक देखने में आते हैं, उतनी ही हमारे साथ सख्ती की जाती है। सरकार कहती है कि वर्तमान अनुमति पत्रोंके द्वारा वह पूरी तरहसे अंकुश नहीं रख सकती। कोई-कोई अँगूठे ठीकसे उठे हुए नहीं हैं और कोई-कोई व्यक्ति तो अनुमतिपत्र और पंजीयनपत्र दोनोंको अलग-अलग जगहोंपर बेच देते हैं। इसमें कुछ तो सही है। लेकिन इस लाञ्छनको हम सामाजिक रूपमें स्वीकार नहीं करते। फिर भी सरकार हमारी बात नहीं मान रही है। इसलिए हमारे लिए उचित है कि हम उसको विश्वास दिलाने का प्रयत्न करें। अर्थात् हमें जो पसन्द हो वैसे फार्मवाले अनुमतिपत्र कानून द्वारा विवश हुए बिना यदि हम लें, तो उसमें कुछ भी खतरा नहीं है। इसलिए हम सरकार से निवेदन करते हैं कि वह कानून पास करने की बात छोड़ दे। हम अपने-आप ही अनुमतिपत्र बदलवा लेंगे। यदि यह निवेदन मान लिया जाये तो हमारी प्रतिष्ठा बढ़ेगी, सरकारको हमपर विश्वास होगा, भविष्यमें जब कानून बनेंगे तब भी हमारी सलाह ली जायेगी, और नया विधेयक अपने-आप खत्म हो जायेगा। स्वेच्छापूर्वक किये गये काममें कुछ भी अपमान नहीं होगा। फिर चूंकि यह सुझाव हमारी ओरसे ही जा रहा है, इसलिए विलायतमें हमारी नम्रता, सहिष्णुता, और विवेक बुद्धिकी प्रशंसा की जायेगी, और भविष्यकी लड़ाईमें हमें हर प्रकारसे लाभ होगा। इसलिए अगर हमें ऐसे उपाय करने हों जिससे यह कानून पास न हो तो जेल के बाद यह सर्वश्रेष्ठ उपाय है। इसके अलावा इस प्रकारके अनुमतिपत्रका आधार हमारा आपसी समझौता है। इसलिए किसी भी समय यदि अधिक जुल्म हो तो हम लोग उस समझौते से इनकार कर सकते हैं।

इस प्रकारका निवेदन करनेके बाद हम जेल जानेका विचार रखते हैं, यह भी बहुत शोभा देनेवाली बात है। आखिरी इलाज तो निस्सन्देह जेल ही है। हमने इस बार जेलका प्रस्ताव नहीं किया, इसका कोई यह अर्थ न करे कि यदि यह कानून पास हो जाये तो हमें जेल नहीं जाना है। जेलकी बात किसीको अपने मनसे दूर नहीं होने देनी है।

इसके बाद अध्यक्ष साहबका उपकार मानकर सभा विसर्जित हुई।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ६-४-१९०७