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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

 

'रैंड डेली मेल' की टीका

उपर्युक्त रिपोर्टकी 'रैंड डेली मेल' ने सख्त टीका की है। टीकाकारका कहना है कि श्री चैमनेने एशियाई आव्रजनपर नियन्त्रण लगानेके कारण तो बताये, लेकिन वे यह नहीं बतला सके कि आज जो कानून लागू है उससे ज्यादा और भी कुछ किया जाना चाहिए। श्री चैमनेकी रिपोर्टसे स्पष्ट मालूम होता है कि आज जो तरीका अपनाया गया है वह असफल रहा है। यदि ऐसा हो तो वह तरीका नये कानूनसे नहीं बदलनेवाला है। एक अँगूठेके बदले दस अँगुलियाँ देने से कोई बड़ा फर्क होगा, सो तो नहीं माना जा सकता। इसलिए अब जो करना चाहिए सो यह कि कानून नहीं बल्कि तरीका नया हो। और यदि वह तरीका भारतीय समाजसे सलाह करके खोजा जा सके तो बहुत सुविधा होगी और आज बड़ी सरकारसे टकरानेकी जो नौबत आई है वह दूर हो जायेगी। श्री चैमनेने वर्तमान व्यवस्थाके दोष बतलाये हैं, लेकिन उससे तो अधिक अच्छा होता कि वे भावी व्यवस्था के सम्बन्धमें कुछ कहते।

विलायतको तार

उपनिवेश सचिव ने एशियाई विधेयकके विषयमें तार भेजनेसे जो इनकार कर दिया था, उसपर [ब्रिटिश भारतीय] संघके अध्यक्ष महोदयने लॉर्ड सेल्बोर्नसे पूछा था कि क्या किया जाये।[१] उन्होंने जवाब दिया है कि स्थानीय सरकारने जो कुछ किया है उसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता। इसपर संघने पिछले शनिवारको लॉर्ड एलगिनके नाम लम्बा तार[२] भेजा है और दक्षिण आफ्रिकी ब्रिटिश समितिके नाम भी शिष्टमण्डलके सम्बन्ध में संक्षिप्त तार[३] भेजा है। इन तारोंमें २८ पौंड लग चुके हैं।

फेरीवालोंके लिए जानने योग्य

व्यापार-संघने फेरीवालोंके लिए विशेष कानून बनाने के सम्बन्धमें सुझाव दिये हैं। उनमें एक सुझाव ऐसा है कि किसी भी फेरीवालेको व्यापारके सिलसिले में एक जगह २० मिनटसे ज्यादा नहीं रुकना चाहिए; और वही फेरीवाला उसी दिन उसी जगहपर दूसरी बार नहीं आ सकता; और फेरीवाले सिर्फ खुले रास्तोंपर ही फेरी लगा सकते हैं। ये सुझाव अभी मंजूर नहीं हुए हैं। किन्तु यदि हो गये, तो फेरीवालोंका बुरा हाल होगा।

अनुमतिपत्रके सम्बन्धमें चेतावनी

अभी-अभी मुझे कई जगहोंसे मालूम हुआ है कि कुछ व्यक्ति, विशेषकर एक गोरा, भारतीयोंको जाली अनुमतिपत्र देते हैं। इस बातके सच होने की सम्भावना है। ऐसे अनुमति-पत्रोंके लिए कुछ भारतीय बहुत पैसा देते हैं। मुझे सूचित करना चाहिए कि इन अनुमति-पत्रोंको किसी कामका न समझा जाये। जो लेंगे वे अपराध करेंगे। यानी यह पैसे देकर कष्ट मोल लेने के समान होगा। इतना तो आसानीसे समझमें आ जाना चाहिए कि जाली अनुमति-पत्रोंकी प्रतिलिपि अनुमतिपत्र कार्यालयमें हो ही नहीं सकती और जबतक अनुमतिपत्र कार्यालय में वैसी प्रतिलिपि न हो तबतक अपने लिये हुए अनुमतिपत्रको झूठा ही समझा जाये।

  1. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ४०७।
  2. देखिए "तार : उपनिवेश-मंत्रीको", पृष्ठ ४२४।
  3. देखिए "तार : द॰ आ॰ वि॰ भा॰ समितिको", पृष्ठ ४२४।