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४३२. ट्रान्सवालके भारतीयोंका कर्तव्य

हमने श्री तिलकके भाषणका सारांश दूसरी जगह दिया है। उसकी ओर हम ट्रान्सवालके भारतीयोंका ध्यान खींचते हैं। उनकी जिम्मेदारी बहुत बड़ी है। नया कानून पास हो तो उन्होंने जेल जानेका प्रस्ताव स्वीकार किया है। शपथ ली जाये या नहीं, सितम्बर माहकी शपथ बन्धनकारी है या नहीं, ये प्रश्न अब नहीं उठते। बात यह है कि इस कानूनके सामने घुटने न टेकनेका विचार हमने सारे संसारमें जाहिर कर दिया है। इसीके आधारपर श्री रिच लड़ रहे हैं। इसीके आधारपर विलायत शिष्टमण्डल भेजा गया था। इसीके आधार-पर बहुत-से गोरे मदद कर रहे हैं और यह सवाल इतना गम्भीर है कि श्री स्मट्स भी विचारमें पड़ गये हैं। किम्बरलेके लोगोंने तार भेजे हैं; नेटाल कांग्रेसने तार भेजे हैं। यह सब इसीलिए कि जेलका प्रस्ताव पास हुआ है। इस समय भय नहीं रखना है, बल्कि अपनी और सारे भारतीय समाजकी लाज रखनेके लिए ट्रान्सवालके भारतीयोंको चुस्तीके साथ जेल के प्रस्तावपर डटे रहना है।

श्री तिलकने जो भाषण दिया है वह हमपर आज भी लागू होता है। जब तक हम अपनी मांग मंजूर करनेके लिए मजबूर न कर देंगे तब तक वह मंजूर नहीं होगी। हमारा बहिष्कार[१]—हमारा हथियार तो यही है कि हम जेल-रूपी अक्सीर इलाजका अवलम्बन करें। उसमें असफलता है ही नहीं, क्योंकि जेल जाकर हारने के लिए रहा ही क्या?

हम ट्रान्सवालके समाजको फिरसे याद दिलाते हैं कि वहाँ केपके रंगदार लोगोंने पासका विरोध किया, पास लेनेसे इनकार किया और जेल गये, इससे सरकार उन्हें पास लेनेके लिए विवश नहीं करती। पासका कानून यद्यपि उनपर लागू होता है फिर भी उनसे जबरदस्ती नहीं की जा सकती। ऐसे रंगदार लोगोंकी अपेक्षा हम डरपोक साबित हों, यह तो होना ही नहीं चाहिए। श्री रिचने लॉर्ड ऐम्टहिलको जो आश्वासन दिया है उसके अनुसार हम न चलेंगे तो सारी मेहनतपर पानी फिर जाना सम्भव है। मतलब यह कि भारतीय समाज जेलके प्रस्तावपर चुस्ती से डटा रहा तो समझ लेना है कि नया कानून बना ही नहीं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २०-४-१९०७
 

४३३. इंग्लैंड और उसके उपनिवेश

आजकल लन्दनमें इंग्लैंडकी जनता उपनिवेशोंके मन्त्रियोंका स्वागत कर रही है। डॉक्टर जेमिसनपर, जिन्होंने बोअरोंके मुल्कको लूटना चाहा था, जय जयकार बरस रहा है। जहाँ भी वे तथा उपनिवेशोंके अन्य मन्त्री जाते हैं, उनका बहुत मान-सम्मान किया जाता है। उनके दोषोंका किसीको खयाल नहीं, केवल गुणोंका ही विचार किया जा रहा है।

यह सब वास्तविक है। जहाँ ऐसा हो वहीं जनताकी उन्नति हो सकती है। उपनिवेश अंग्रेज प्रजाकी सन्तानके समान हैं। पिता सन्तानसे उत्साहके साथ मिलता है। वह अपनी

  1. बहिष्कार अबतक भारतीय राजनीतिका भी एक महत्त्वपूर्ण अंग बन चुका था।