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जोहानिसबर्गी चिट्ठी
- दी हैं वे इतनी उचित हैं कि मेरा संघ मानता है कि सरकारको उन सूचनाओंको स्वीकार करना आवश्यक समझना चाहिए।
- आपको याद दिलाने का साहस करता हूँ कि जिस प्रकार पंजीकृत होनेके लिए इस बार सूचना दी गई है उसी प्रकारका पंजीयन करवाना भारतीय समाजने लॉर्ड मिलनरकी सलाहसे भी स्वीकार किया था, और चीनियोंने भी उस निर्णयको माना था। मेरा संघ आपसे नम्रतापूर्वक निवेदन करता है कि इसमें किसी भी प्रकार वचन देने की जरूरत नहीं; क्योंकि जो सूचनाएँ दी गई हैं उनपर तत्काल अमल किया जा सकता है। और थोड़े ही समय में मालूम हो जायेगा कि कितने एशियाई अपना वर्तमान अनुमतिपत्र बदलवाकर नया प्रमाणपत्र लेनेको तैयार हैं।
- आपने अपने पत्र में बिना अनुमतिपत्रवाले लोगोंका प्रश्न उठाया है। किन्तु वह प्रश्न हमारी सूचना या नये कानूनमें नहीं उठता। क्योंकि बिना अनुमतिपत्रवाले लोग दोनोंमें से एक भी स्थितिमें अनुमतिपत्र नहीं ले सकेंगे। जब पुनः पंजीयन हो जायेगा तब बिना अनुमतिपत्रके लोगोंकी जाँच करनेका काम ही शेष रहेगा और जो इस देश में गैरकानूनी तरीकेसे रह रहे होंगे उन्हें सूचना देना बाकी रहेगा।
- मेरा संघ स्वीकार करता है कि बहुत-से भारतीयोंके बिना अनुमतिपत्रके आ जानेकी बातसे गोरोंके मन भड़कते हैं और इसीलिए मेरे समाजने उपर्युक्त सूचना दी है। उस सूचनाके अनुसार शिनाख्त के लिए बहुत-से साधन मिल सकेंगे। और जब [नये पंजीयनपत्र दे देनेके बाद] वर्तमान दस्तावेज ले लिये जायेंगे तब शिनाख्त के साधनोंकी अड़चन तो रह ही नहीं सकती। लेकिन मुझे यह कह देना भी आवश्यक जान पड़ता है कि शिनाख्तकी चाहे जैसी व्यवस्था की जाये फिर भी चोरीसे आनेवाले तो आते ही रहेंगे। मुझे यह भी बता देना चाहिए कि चोरीसे बहुत लोग नहीं आते, और यही बात श्री चैमनेकी रिपोर्टसे सिद्ध होती है।
- इसलिए मेरा संघ अर्जीपर फिरसे विचार करनेके लिए सरकारसे विनती करता है और आशा करता है कि फिरसे विचार करते समय सरकार भारतीय समाजके सुझाव के बारेमें ज्यादा अच्छी राय कायम करेगी।
- आपने कानून तोड़ने से सम्बन्धित प्रस्तावके बारेमें लिखा है। उसके उत्तरमें हमें कहना चाहिए कि कानून तोड़ने की बात तो है ही नहीं। किन्तु यदि भारतीय समाजकी अनुशासनप्रियतापर बहुत दबाव डाला जाये और कौम अपनी प्रतिष्ठाकी रक्षा करना चाहती हो तो उसके पास एक ही रास्ता है, सो यह कि कानूनकी अन्तिम सजाको स्वीकार किया जाये—यानी जेल जाया जाये। इस प्रकार भारतीय समाज कानूनका भंग करना चाहता है सो बात नहीं। बल्कि वह तो नम्रतापूर्वक बतलाना चाहता है कि नये कानूनसे उसकी भावनाओंको बहुत ही चोट लगती है। कानूनका अर्थ ऐसा है कि भारतीय समाजको उसके उद्देश्यका विरोध करना चाहिए। किन्तु उपर्युक्त सूचनाके द्वारा भारतीय समाज तो कानूनका उद्देश्य सफल कर रहा है। इसलिए मेरा संघ नम्रतापूर्वक प्रार्थना करता है कि कानूनके अमल में आने से पूर्व कौमकी सूचनाकी परीक्षा की जानी चाहिए। मेरे संघको विश्वास है कि एशियाई लोग उस सूचनाका निर्वाह करेंगे, इसीलिए वह सूचना दी गई है।