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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मुझे घर-सम्बन्धी हिसाब अब मिल गया है। उन्होंने मुक्तहस्त होकर खर्च किया है, ऐसा जान पड़ता है, और तब भी व्यौरेमें मेरे आपत्ति करने लायक कुछ नहीं है। मैं यह भी देखता हूँ, पियानो मेरे नाम अभीतक नहीं डाला गया है। जल्दीमें हिसाब देखने में मेरी निगाह उसपर न पड़ी हो तो बात दूसरी है। इस तरह यह रकम कोई १० पौंड और बढ़ जायेगी। बात यही है न?

गोकुलदासकी सगाईंके बारेमें मुझे गहरा असंतोष है, क्योंकि मैंने सुना है, सगाई करनेके लिए उसने नकद २,००० रुपये दिये हैं। मैं नहीं जानता कि मैंने इस बातको ठीक-ठीक समझा है। यदि यह जेवरोंके बारेमें है तो यह मामला इतनी आलोचनाके लायक नहीं है। इसके बारेमें मुझे बहुत कम विवरण मिला है। यदि तुम्हें कोई निश्चित बात मालूम हो तो मैं जानना चाहूँगा कि वास्तवमें क्या हुआ?

तुम्हारा शुभचिन्तक,
मो॰ क॰ गांधी

[पुनश्च :]

मैं तुम्हारे पास 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के तीन अंक भेज रहा हूँ। मैं चाहता हूँ कि चित्रोंको देखने के बाद तुम गायकवाड़, जाम साहब और क्रिकेट दलके चित्र काट लो। किसी दिन जल्दी ही हमें इनमें से किसीको प्रकाशित करनेकी जरूरत पड़ सकती है। दूसरे चित्रोंको भी, जिनपर तुम्हारी दृष्टि पड़े और जिन्हें तुम छापने योग्य समझो, काटकर रख सकते हो।

टाइप की हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ४७३४) से।
 

४३८. पत्र : लक्ष्मीदास गांधीको

[अप्रैल २०, १९०७ के लगभग][१]

पूज्यश्री की सेवामें,

आपका पत्र मिला। मैं आपको बड़ी शान्तिसे जवाब देना चाहता हूँ और वह भी, मनमें जो विचार आये हैं, उन्हें लिखता हूँ। जहाँतक बने, पूरी तौरपर। पहले तो मेरे बादमें आपके प्रश्नोंका जवाब दूँगा।

मुझे भय है कि हम दोनोंके विचारोंमें बड़ा भेद है और उनके मिलनेकी सम्भावना फिलहाल नहीं दीखती। आप पैसेके द्वारा शान्ति पाना चाहते हैं, मैं शान्तिका आधार पैसेपर नहीं रखता। और इस समय तो यह मानता हूँ कि मन अत्यन्त शान्त है और बहुत दुःखोंको सहन करने के लिए बना है।

आप प्राचीन विचारोंको मानते हैं। उसी तरह मैं भी मानता हूँ। फिर भी हमारे बीच भेद है। क्योंकि आप प्राचीन वह्नोंको मानते हैं और मैं नहीं मानता। इतना ही नहीं, बल्कि उन्हें मानना पाप गिनता हूँ।

आप मुमुक्षु हैं। उसी तरह मैं भी हूँ। फिर भी, आपके मोक्ष-दशाके विचार और मेरे विचारमें बहुत भेद जान पड़ता है। मेरी आपके प्रति अत्यन्त निर्मल वृत्ति है, फिर भी

  1. मूल पत्रमें तिथि नहीं दी गई है; तथापि पिछले शीर्षकमें गांधीजीने गोकुलदासकी सगाई की चर्चा की है। और इस पत्र में वे उनके विवाहका उल्लेख करते हैं। इसी दृष्टिसे इस पत्रको इस तिथिक्रममें रखा गया है।