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पत्र : लक्ष्मीदास गांधीको

आप मेरे प्रति तिरस्कार-भाव रखते हैं, इसका कारण मुझे यह दिखाई देता है कि आप मोह-लुब्ध हैं और स्वार्थपूर्ण सम्बन्ध रखते हैं। यह सब आप अनजाने ही करते हैं, फिर भी परिणाम जो मैं कह रहा हूँ, वही है। यदि आपके विचारकी मुमुक्षु-दशा ठीक हो, तो फिर मैं अत्यन्त पापी हूँ। आपको यदि दगा देता होऊँ, तो भी आपका चित्त स्वस्थ रहना चाहिए और मुझे भूल जाना चाहिए। किन्तु अत्यन्त रागके कारण आप वैसा नहीं कर पाते, ऐसी मेरी मान्यता है। यदि इसमें मैं चूकता हूँ, तो आपके सामने साष्टांग दण्डवत् करके माफी माँगता हूँ।

आप मोह-लुब्ध हों या न हों, मुझे उसपर रोष नहीं है। मेरी भक्तिमें भेद नहीं है। मेरा पूज्यभाव अंशमात्र भी कम नहीं हुआ और मुझसे जितनी बने उतनी सेवा करनेके लिए तैयार हूँ और उसे अपना कर्तव्य समझता हूँ।

'कुटुम्ब'—यानी क्या, यह मैं नहीं समझ सका। मेरे लेखे कुटुम्बमें केवल दो भाई ही नहीं आते, बहनें भी आती हैं, काकाके लड़के भी आते हैं। दरअसल यदि मैं विना अभिमानके कह सकूँ तो कहूँगा कि जीवमात्र मेरा कुटुम्ब है। भेद यही है कि जो सगे-सम्बन्धी होने के नाते अथवा दूसरे प्रसंगों के कारण मुझपर विशेष निर्भर हैं, उन्हें मेरी सहायता विशेष मिलती है। इसी कारण स्त्रीके नाम बीमा करवाया है। वह भी आपकी नाराजीभरी चिट्ठियाँ बम्बई में आती थीं, मैं प्लेगके काम में जुटनेवाला था और कहीं आपके ऊपर स्त्री और बच्चोंका बोझ आ पड़ा तो आपका विशेष शाप लगेगा, इस विचारसे मैंने कराया। मैं स्वयं बीमके विरुद्ध हूँ, फिर भी उपर्युक्त और ऐसे ही अनेक कारणोंसे वह काम किया है। यदि मुझसे पहले आपका देहावसान हो जाये, तो भाभी और बच्चोंके लिए मैं खुद बीमा हूँ। इस विषय में मेरी प्रार्थना है कि आप निर्भय रहें। इसके उदाहरण स्वरूप आप रलियात बह्निकी स्थिति ले लीजिए।

रलियात बहिन आपके साथ नहीं रहतीं, इसमें मैं अपना दोष नहीं समझता बल्कि इसका दोष आपका स्वभाव है। मैं आपको विनम्रतापूर्वक याद दिलाता हूँ कि बाको आपसे सन्तोष नहीं हुआ। दूसरे कुटुम्बियोंको भी सन्तोष नहीं हुआ।

चि॰ गोकुलदास और हरिलाल मेरे कारण नहीं बिगड़े। गोकुलदास मुझसे जुदा हुआ, और वहाँकी जहरी हवाके कारण बिगड़ा। हरिलालकी भी कुछ हद तक वही बात है। फिर भी आप जैसा मानते हैं, वैसा उन दोनोंमें से एक भी नहीं बिगड़ा है। दूसरे लड़कोंकी अपेक्षा उनका चरित्र अच्छा है। मैं केवल अपनी दृष्टिसे ही दोष निकालता हूँ। यहाँ आनेसे हरिलालका कल्याण हुआ है और यदि मैं भूलता न होऊँ, तो उसका चरित्र बहुत सुधरा है। हरिलालका विवाह हो गया, इसलिए अब उसके बारेमें मुझे कुछ कहनेको नहीं बचता। किन्तु मैं उससे खुश हुआ हूँ, यह तो नहीं कह सकता।

गोकुलदासका विवाह हो जायेगा, इसे भी मैं गलत मानता हूँ। किन्तु उन दोनों भाइयोंका विवाह लगभग आवश्यक हो गया। इसका कारण वहाँका विषयी वातावरण है। ऐसा कहने में देशके प्रति मेरी भावनाका अभाव नहीं है, बल्कि देशकी वर्तमान करुणाजनक स्थितिके प्रति खेद है।

सौभाग्य से मणि[१], रामा[२] और देवा[३] यहाँ हैं, इसलिए संस्कार अच्छे हैं। इसलिए उनके विवाहके विषय में मैं निश्चिन्त हूँ। मेरे विचार ऐसे हैं कि इस समय बहुत से भारतीयोंके लिए

  1. मणिलाल, रामदास और देवदास—गांधीजीके पुत्र।
  2. मणिलाल, रामदास और देवदास—गांधीजीके पुत्र।
  3. मणिलाल, रामदास और देवदास—गांधीजीके पुत्र।