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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ब्रह्मचर्य का पालन आवश्यक है। यदि विवाह करें तो भी। इसलिए, जो तीनों लड़के ब्रह्मचर्य-दशामें मर जायें, तो मुझे खेद होनेके बदले खुशी होगी। फिर भी, उम्र आनेपर यदि उनकी विवाहकी इच्छा हुई तो मेरा विश्वास है कि उन्हें योग्य कन्याएँ मिल जायेंगी। अपनी ही जातिमें न मिलीं तो क्या करेंगे, इसका जवाब देनेसे आप उद्विग्न हो जायेंगे, इसलिए क्षमा माँगता हूँ और उसका जवाब न देनेकी आज्ञा चाहता हूँ। मैं फिरसे कहता हूँ कि श्रद्धाके अनुसार फल मिलता है। यही ईश्वरीय नियम है। इसलिए मेरे मनमें यह प्रश्न उत्पन्न नहीं होता।

छगनलाल, मगनलाल और आनन्दलाल कुटुम्बी हैं, इसलिए उनकी सेवा करने में कुटुम्बकी सेवा आ जाती है। वे फीनिक्समें आ गये हैं, इसलिए सुधरे हैं और उनकी नैतिकतामें वृद्धि देखता हूँ।

आपने सौ रुपया महीना माँगा है सो देनेकी फिलहाल ताकत नहीं है; जरूरत भी नहीं देखता। मैं कर्ज करके फीनिक्सका कारखाना चलाता हूँ। फिर यहाँके नये कानूनोंके विरुद्ध लड़ाई करनेमें कभी मुझे जेल भी जाना पड़ सकता है। यदि ऐसा हुआ तो मेरी परिस्थिति बहुत बुरी हो सकती है। यह परिणाम एक-दो महीने में मालूम हो जायेगा। इसलिए फिलहाल इस सम्बन्धमें मैं कुछ नहीं कर सकता। फिर भी यदि दो-चार महीने में स्थिति बदली और निर्भय हुआ, तो यहाँसे आपको मनीऑर्डर द्वारा पैसा भेजनेका प्रयत्न करूँगा। वह भी आपको खुश रखने के लिए।

मेरी कमाईमें आपका और उसी प्रकार भाई करसनदासका भाग है। ऐसा ही मैं मानता हूँ। आप जो खर्च करते हैं उसकी अपेक्षा परिमाणमें मैं अपने उपभोगपर कम खर्च करता हूँ। परन्तु मेरी कमाईमें कहने का अर्थ यह है कि मेरे लिए जो कुछ बच जाता है, उसमें। मेरा यहाँ रहनेका पहला हेतु कमाईका नहीं, बल्कि लोकसेवाका था। इसलिए यहाँके खर्चसे बचे हुए पैसेको लोकसेवामें लगाना मैंने अपना फर्ज माना है। इसलिए यह न माना जाये कि मैं यहाँ कमाई करता हूँ। आपको याद दिलाता हूँ कि मैं दोनों भाइयोंके बीच में लगभग ६० हजार रुपया भर चुका हूँ। वहाँ था, तब सब कर्ज चुकाया था और आपने कहा था कि अब कुछ जरूरत नहीं है। उसके बाद ही मैंने यहाँ खर्च करनेका निश्चय किया। नेटालमें जो बचा था, वह सारा आपको सौंप दिया था। उसमें से या इसमें से मैंने एक पेनी[१] भी नहीं रखी। इसलिए आप देखेंगे कि मेरे ऊपर विलायतमें खर्च हुए १३ हजार रुपये से ज्यादा मैं दे चुका हूँ। इससे मैं यह नहीं कहना चाहता कि मैंने कोई उपकार किया है, किन्तु जो हकीकत गुजरी है, वह आपका रोष उतारनेके लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ।

फिट्ज़रल्ड साहबने आपसे मेरे विषयमें जो कहा उससे उनका अज्ञान प्रकट होता है। अब आपके सवालोंका[२] जवाब देता हूँ। सवाल इसीके साथ वापस भेज रहा हूँ :

१. मुझे विलायत भेजने का उद्देश्य यह था कि हम पिताजीकी गद्दी कुछ अंशोंमें सँभालें और सब भाई मालदार होकर ऐशो-आराम भोगें।

२. इसमें जोखिम बहुत थी, क्योंकि हमारे पास जो कुछ था, सो मेरी शिक्षामें लगा देनेका विचार किया था।

  1. इंग्लैंड का सबसे छोटा सिक्का जो १ आनेके बराबर होता है।
  2. श्री लक्ष्मीदासजीका वह पत्र, जिसमें ये सवाल थे, उपलब्ध नहीं है।