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४४४. फ्रांसीसी भारत

हमारे पाठकोंको स्मरण होगा कि भारत में पहले फ्रांसीसियोंने भी राज्य भोगने की कोशिश की थी। उनके पास उस समयके तीन स्थान बचे हैं, जो फ्रांसीसी भारत कहलाते हैं। उनके नाम हैं चन्द्रनगर, पांडीचेरी और कालीकट।[१] बहुत बार यह कहा जाता है कि फ्रांसीसियोंका बरताव भारतीयोंके प्रति अच्छा है। हाल ही में इसका एक उदाहरण देखने में आया है। पांडीचेरीके गवर्नरने वहाँके भारतीय समाजको निम्न प्रकार पत्र लिखा है :

नागरिको, थोड़े दिनोंमें आपको और आपकी जमीनको देखनेके लिए मैं आनेवाला हूँ। मैं आपके खेत, पानीके बाँध आदि देखूँगा, और आप लोगोंकी अर्जियाँ सुनूँगा। आप लोग मुझपर पूरा विश्वास रखकर आयें। गणराज्यका प्रतिनिधि सभी लोगोंके प्रति एक-सा बरताव करनेके लिए बाध्य है, तथा आपके और मेरे बीचमें सिर्फ एक ही चीज है, वह है कानून। कानूनके अन्तर्गत मुझसे जितना भी दिया जा सकेगा, मैं दूँगा; और कानूनकी मर्यादा मैं आपको साफ-साफ बता दूँगा। मुझे बेकार अथवा न कुछ सवाल न पूछें, क्योंकि उनके उत्तरमें जो समय जायेगा उसे हम और भी महत्त्वके सवालोंका हल निकालने में लगा सकेंगे।
आप लोग अपनी खेतीके काममें लगे हुए हैं। मुझे भी बहुत-से काम हैं। इसलिए हमें शानदार भवनोंमें मिलने और गुलाब-चमेलीके हार पहनने का समय नहीं है। यह निश्चित समझें कि मैं किसी प्रकारके दिखावे और ठाटके बिना आप लोगोंसे मिलने के लिए ही आ रहा हूँ। और मैं आपसे सादगी में मिलकर ही प्रसन्न होऊँगा। आप लोग अपनी मेहनत-मजदूरीमें लगे होंगे; मैं उसी रूपमें आपको देखूँगा, उसमें आपको अधिक पहचान सकूँगा और आपके कष्टोंको समझकर उन्हें दूर कर सकूँगा। जिस प्रजापर ऐसे अधिकारी हों वह क्योंकर दुःखी हो?
[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-४-१९०७
 

४४५. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी
एशियाई विधेयकके सम्बन्धमें चीनियोंकी अर्जी

चीनी संघने भारतीय समाजकी अर्जी मंजूर करने के सम्बन्ध में पत्र लिखा था। उसका श्री स्मट्सने जवाब दिया है कि भारतीय समाजकी सूचना सरकारने मंजूर नहीं की, और कर भी नहीं सकती। खबर मिली है कि इसपर उन्होंने विलायत में चीनी राजदूतको तार भेजा है। चीनी भी जोशमें हैं। उनके मन्त्रीने मुझसे कहा कि यदि कानून मंजूर होगा तो वे भी जेल जायेंगे।

  1. स्पष्टतः गांधीजीका मतलब माहीते है।