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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

 

समितिका तार

संघने विलायतकी समितिको जो आखिरी तार भेजा था, उसका जवाब यह मिला है। कि जनरल बोथासे मिलनेकी व्यवस्था की जा रही है। लॉर्ड एलगिनको सख्त पत्र भेजा गया है और लोकसभाके सदस्योंकी बैठक बुधवारको होगी। उपर्युक्त तार गुरुवार, १८ तारीखको मिला। शनिवार, २० तारीखके 'रैंड डेली मेल' में तार है कि जनरल बोथाने समितिसे मिलनेकी स्वीकृति दे दी है। आजतक इतनी ही खबर मिली है।

क्या होगा?

इससे और समितिके पत्रसे यह मानना अकारण न होगा कि विधेयक स्वीकार हो जायेगा। और यदि ऐसा हो तो स्पष्ट ही जेलके सिवाय दूसरा उपाय नहीं रहता। मैंने सुना है कि एक गोरे अधिकारीके पास जेलके निर्णय की बात चल रही थी। उसने हँसकर कहा कि भारतीय समाज ऐसे निर्णयोंका पालन करेगा, यह मैं मानता ही नहीं। इस वाक्यको बहुत ही महत्त्वपूर्ण मानना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय समाजकी साख बहादुरीकी नहीं है। और इसलिए सरकार चाहे जैसे कानून पास करनेकी हिम्मत करती है। यदि विधेयक पास हो जाये और हम जेल जाने की बात दरकिनार कर दें तो यही समझना चाहिए कि भारतीय समाजके बारह बज गये।
उस गोरे अधिकारीकी हँसीसे मालूम होता है कि जेलके प्रस्तावमें यदि उन लोगोंने विश्वास किया होता तो वे विधेयक फिरसे लाते ही नहीं। हम सच्चे हैं, इसे सिद्ध करनेका अब समय है। हम पढ़ चुके हैं कि एक लड़का "भेड़िया आया" कहकर हमेशा झूठा शोर मचाया करता था। लोग उसकी मददके लिए आते और भेड़ियेको न देखकर चिढ़कर चले जाते थे। एक बार भेड़िया सचमुच ही आ गया। तब लड़केने चिल्ला-चिल्लाकर खूब शोर मचाया, लेकिन लोगोंने मजाक समझा और मदद करने नहीं आये, जिससे वह लड़का मारा गया। उनका खयाल है कि हमने भी झूठा शोर बहुत मचाया है। अब यह बतलाना बिलकुल जरूरी है कि हमारा शोर सच्चा है।

शंकाओंके उत्तर

विधेयक पास न हो, इसके लिए बहुत प्रयत्न किया जा रहा है फिर भी हमें पहलेसे इस दृष्टि से तैयार रहना चाहिए कि वह पास हो ही जायेगा। कई जगहोंसे भिन्न-भिन्न प्रश्न पूछे गये हैं। उनमें से मुख्य एवं आवश्यक प्रश्नोंका खुलासा नीचे लिखे अनुसार करता हूँ :
यह बात याद रखनी चाहिए कि यह सारी लड़ाई सच्चे अनुमतिपत्रवालोंके लिए है। इसलिए जिनके पास यह हथियार न हो उन्हें तो ट्रान्सवाल छोड़ ही देना चाहिए। जो लड़ाईके पहलेसे यहाँ बसे हुए हैं अथवा जो शुद्ध तरीकेसे लड़ाईके बाद यहाँ आये हैं, परन्तु जिनके पास सच्चे अनुमतिपत्र हैं, उन्हें टक्कर लेनी है। लड़कोंको कोई तकलीफ दे सकेगा, ऐसी स्थिति नहीं है। १६ वर्षसे कम उम्रवालोंको लड़का समझा जाये। इतनी स्पष्टता हो जानेके बाद सचमुच समझना तो यह है कि लड़ाई किस तरहसे करनी है। उसके उत्तरमें [हम कहेंगे] :