पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/४९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४५५
जोहानिसबर्ग की चिट्ठी


१. सभी लोगोंको एकदम जेल ले जायें या जाना पड़े, यह कभी होनेको नहीं है।

२. कानून मंजूर हो जानेके बाद अमुक अवधिमें अनुमतिपत्र बदलने का हुक्म होगा।

३. उस अवधि में कोई भारतीय अनुमतिपत्र न बदलवाये।

४. अर्थात्, अवधि बीत जानेपर सरकार किसी भी व्यक्तिको बिना अनुमतिपत्रके रहने के आधारपर पकड़ सकती है।

५. सरकार किसे और कहाँ पकड़ेगी, यह कहा नहीं जा सकता।

६. मान लीजिए किसी भी गरीब भारतीयको पकड़ लिया गया। अब, श्री गांधीके सितम्बर माह में कहे अनुसार, यदि वह सच्चे अनुमतिपत्रवाला होगा तो वे स्वयं उसका मुफ्त बचाव करेंगे।

७. उस समय वे स्वयं यह प्रमाण दें कि उन्होंने पूरे समाजको यह सलाह दी है कि कानूनके अनुसार कोई अनुमतिपत्र न ले, बल्कि नम्रतापूर्वक जेल जाये। उसी सलाहको मानकर सदर मुवक्किलने नया अनुमतिपत्र नहीं लिया है।

८. इस प्रकार जब वकील ही कहेगा तब, सम्भव है, सरकार उस आदमीको छोड़कर वकील को ही पकड़ेगी। यदि यह हुआ तो श्री गांधी ही पकड़े जायेंगे और मुवक्किल छूट जायेंगे। इस समय यदि सम्भव हुआ तो संघकी ओरसे भी ऐसा ही बयान दिया जायेगा।

९. फिर भी सम्भव है कि पकड़े हुए व्यक्तिको सजा होगी और यदि ऐसा हुआ तो पहली सजा तो यह दी जायेगी कि वह अमुक अवधि में देशको छोड़कर चला जाये।

१०. उपर्युक्त अवधिके बीत जानेके बाद उसे फिर पकड़ा जायेगा। तब अदालतका हुक्म न माननेके कारण उसे जुर्माने अथवा जेलकी सजा होगी।

११. जुर्माना देने से वह व्यक्ति इनकार करेगा। इसलिए उसे जेल जाना होगा।

१२. इस प्रकार यदि बहुत लोगोंपर मुकदमा चले और वे सब जेल जायें तो सम्भावना यह हैं कि तुरन्त ही छुटकारा हो जायेगा और ठीक-सा नया कानून बनेगा।

१३. लेकिन यह भी सम्भव है कि जेलसे छूटने के बाद यदि वह व्यक्ति देश छोड़कर न जाये तो उसे वापस जेलमें भेज दिया जाये।

१४. जो लोग इस प्रकार जेल जायेंगे उनके औरत बच्चोंको आवश्यकता पड़ने पर सार्वजनिक निधि से खाने को दिया जायेगा।

संक्षेपमें यह स्थिति होना सम्भव है। वास्तवमें यह कदम जरा भी खतरनाक नहीं है। दूकानदार अपनी दुकानके लिए और फेरीवाले अपने लिए साल भरके परवाने ले रखें, जिससे व्यापारमें रुकावट न हो। दुकानदार किसीको दुकान में रखकर स्वयं जेलका सुख भोग सकता है। फेरीवालेपर तो कोई मुसीबत आयेगी ही नहीं। मेरा अनुभव ऐसा है कि कई फेरी-वाले इतना कष्टपूर्ण जीवन बिताते हैं कि उससे वे जेल में ज्यादा सुखी रहेंगे। इस जेल में बदनामी तो है ही नहीं, पूरी प्रतिष्ठा ही मिलनी है। इसलिए किसीको घबराना या हिम्मत नहीं हारना चाहिए। जैसा मैं पहले कह चुका हूँ,[१] उसके मुताबिक किसीको इसपर प्रश्न पूछना हो तो वह सीधे सम्पादकके नाम पो॰ बॉक्स नं॰ ६५२२ पर पत्र लिखे, जिससे इस स्तम्भमें ही उनके उत्तर दिये जा सकें। इस बीच मेरी सबसे यही प्रार्थना है कि जेल

  1. देखिए "जोहानिसबर्ग की चिट्ठी", पृष्ठ ४३५।