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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

सकता है कि नगरपालिका काले लोगोंको ट्रामगाड़ियों का उपयोग नहीं करने देती, इसलिए भगवान नाराज हो गये हैं। या, यह कारण हो कि जिनके हाथमें बिजलीके यन्त्र जमानेका काम था उन्होंने उसमें पैसेके लिए धोखा करके इकरारके मुताबिक काम नहीं किया।

उपनिवेश-सम्मेलनमें भारतीय प्रश्न

आज विलायतसे तार आया है। उससे मालूम होता है कि श्री मॉर्लेने कहा है कि भारतीयोंका प्रश्न सम्मेलनमें निश्चित रूपसे उठाया जायेगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-४-१९०७
 

४४६. 'अल इस्लाम'

'अल इस्लाम' का पहला अंक १९ तारीखको प्रकाशित हुआ है। इसके मालिक श्री उस्मान अहमद एफेन्दी हैं, जिनके बारेमें हम बहुत बार लिख चुके हैं। यह पत्र हर सप्ताह शुक्रवारको प्रकाशित होगा। इसका चन्दा डर्बन में १२ शिलिंग, उपनिवेशके दूसरे हिस्सों में १२ शिलिंग ६ पेंस और उपनिवेशके बाहर १७ शिलिंग ६ पेंस है। पहले अंक में दो सुन्दर तसवीरें भी हैं। उनमें एक है सम्राट् एडवर्डकी और दूसरी [तुर्कीके] महामहिम सुल्तानकी। हम 'अल इस्लाम' के लिए लम्बी उम्र की कामना करते हैं।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २७-४-१९०७
 

४४७. जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

[अप्रैल २८, १९०७]

पंजीयनका कानून

'रैंड डेली मेल' अभी तो भारतीयों के पक्ष में है। पिछले सप्ताह उसमें दो अग्रलेख आये हैं। 'नेशनल रिव्यू श' में लॉर्ड मिलनरका एक लेख था। उसपर टीका करते हुए 'रैंड डेली मेल' कहता है कि उपनिवेशका ब्रिटिश साम्राज्यके दूसरे हिस्सोंके बिना काम नहीं चल सकता; जैसे, आस्ट्रेलिया और न्यू साउथ वेल्सका भारतके साथ हर वर्ष दस लाख पौंडका व्यापार होता है। सीलोनके साथ उससे भी ज्यादा है। न्यू साउथ वेल्स जितना न्यूज़ीलैंडको बेचता है, उससे भारतको ज्यादा बेचता है और दक्षिण आफ्रिकाकी अपेक्षा सीलोनको ज्यादा बेचता है। उक्त लेखसे मालूम होता है कि भारतके बिना उपनिवेशका काम नहीं चल सकता। भारत के स्वतन्त्र होनेके लिए बस इतनी देर है कि भारतीय जाग्रत रहकर अपने अधिकार समझें। ट्रान्सवाल में उसका उपाय हाथमें ही है, सो यह कि पंजीयन कानून पास हो जाये तो जेल जायें।