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सम्पूर्ण गांधी वाङमय


उपर्युक्त लेखकी अपेक्षा 'रैंड डेली मेल' का दूसरा लेख नये कानूनपर ज्यादा लागू होता है। उसके लेखकका कहना है कि वर्तमान एशियाई दफ्तर बेकार जान पड़ता है। उस दफ्तरके विवरणसे मालूम होता है कि वह असफल रहा है। उसमें कई कारकुन, निरीक्षक और पूरी वर्दी के चपरासी हैं, फिर भी भारतीय बिना अनुमतिपत्रके घुस आते हैं। इस दफ्तरके वेतनपर हर वर्ष ४,००० पौंड से ज्यादा खर्च होता है। फिर भी, जैसा सुना है, उसके अनुसार सिर्फ एक यूरेशियन कारकुनके हाथमें समूची सत्ता है। यदि ऐसा ही हो तो फिर समझमें नहीं आता कि ४,००० पौंड खर्च करनेकी क्या जरूरत है। तब तो उस कारकुनको सारा काम सौंप देना ठीक माना जायेगा। वास्तवमें तो अनुमतिपत्रका काम केवल पुलिसके जाब्तेकी बात है, नये कानूनकी नहीं।

इस प्रकार 'रैंड डेली मेल' ने बहुत ही सख्त टीका की है और एशियाई दफ्तरकी धज्जियाँ उड़ाई हैं। इससे जान पड़ता है कि दूसरे लोग भी इस दफ्तरपर नजर रखते हैं।

विलायत में सभा

तार मिला कि लोकसभा के सदस्योंकी बैठक[१] २४ तारीख, बुधवारको हुई थी। सर हेनरी कॉटन उसके अध्यक्ष थे। श्री कॉक्स आदि सदस्योंने भाषण दिया तथा श्री मॉर्ले और जनरल बोथासे मिलनेका विचार पेश किया। यह बात मैं रविवारको लिख रहा हूँ। लेकिन मंगलवारको और भी खबर आना सम्भव है ।

एशियाई बाजार

एशियाई बाजार यानी बस्तियाँ नगरपालिकाओंके अधिकारमें सौंप दी गई हैं। इसका फिलहाल तो कुछ भी मतलब नहीं है। क्योंकि वस्तियोंमें भारतीयोंको अनिवार्यतः भेजनेका कानून नहीं है। लेकिन याद रखना चाहिए कि यदि भारतीय समाजने नया कानून स्वीकार किया तो तुरन्त ही बाजारोंमें अनिवार्यतः भेजनेका कानून पास किया जायेगा और फिर नगरपालिकाकी सत्ता पूरी तरह दुःखदायक बन जायेगी।

दक्षिण आफ्रिकाके व्यापारमण्डलोंकी सभा

दक्षिण आफ्रिका व्यापारमण्डल (चेम्बर ऑफ कॉमर्स) की बारहवीं वार्षिक सभा २४ तारीखको प्रिटोरियामें हुई थी। पोर्ट एलिजाबेथके श्री मैकिनटॉश अध्यक्ष थे। उसमें जर्मिस्टनके श्री प्रडीने यह प्रस्ताव पेश किया था कि एशियाइयोंका आव्रजन और व्यापार बन्द किया जाना चाहिए। अपने भाषण में उन्होंने कहा था कि भारतीय व्यापारसे बहुत ही नुकसान होता है। गोरे उनसे प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते। गोरे १०० वर्षसे दक्षिण आफ्रिकामें मेहनत कर रहे हैं। उन्हें भारतीय कौम निकाल फेंके, यह कैसे हो सकता है? स्टैंडर्टन, होडेलबर्ग, पॉचेपस्ट्रूम वगैरहकी हालत बहुत खराब हो गई है। यदि उन्हें आनेसे न रोका जा सकता हो तो उनपर भारी कर लगा दिया जाये, जिससे उन्हें यहाँका रहना लाभप्रद न हो। यदि मौजूदा व्यापारियोंको नुकसानी देनी पड़े तो नुकसानी देकर भी निकाल देना ज्यादा अच्छा होगा।

मसेरूके श्री हॉन्सनने समर्थन करते हुए कहा कि भारतीय व्यापारी बसूटोलैंडमें पहुँच गये हैं और वहाँका बहुत-सा व्यापार उनके हाथमें है। फिर भी श्री प्रैडीका एकदम व्यापार बन्द करनेका प्रस्ताव उन्हें आवश्यकतासे अधिक भारी मालूम हुआ।

  1. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ४५४।