बल्कि जेल जाऊँगा। और यदि जेल जानेवाला मैं अकेला ही हुआ तब भी मैं अपनी प्रतिज्ञापर दृढ़ रहूँगा। क्योंकि :
१. इस कानूनके सामने झुकने में मैं बेइज्जती मानता हूँ और वैसी बेइ-ज्जती स्वीकार करनेके बजाय जेल जाना अधिक पसन्द करता हूँ।
२. मैं मानता हूँ कि मुझे अपने शरीरसे अपना देश अधिक प्यारा है।
३. सितम्बरके प्रस्तावकी घोषणा करनेके बाद यदि भारतीय समाज कानूनके सामने झुकता है तो वह सब कुछ खो देगा।
४. हमें विलायत में जो बड़े-बड़े लोग मदद कर रहे हैं, मैं मानता हूँ, वे चौथे प्रस्तावपर भरोसा किये हुए हैं। यदि हम पीछे पैर रखते हैं तो हम उन्हें बट्टा लगायेंगे। इतना ही नहीं, फिर वे भी हमारी मदद कभी नहीं करेंगे।
५. दूसरे कानूनोंके खिलाफ जेलका रास्ता नहीं बरता जा सकता। किन्तु इस कानून के सामने वह अक्सीर है तथा छोटे-बड़ेपर एक-सा लागू होता है।
६. इस वक्त यदि मैं पीछे पैर रखता हूँ तो भारतीय समाजकी सेवाके लिए अयोग्य माना जाऊँगा।
७. मैं मानता हूँ कि यदि सारे भारतीय दृढ़ रहकर कानूनके सामने नहीं झुकेंगे तो उनकी प्रतिष्ठा बढ़ेगी। इतना ही नहीं, भारतमें भी ट्रान्सवालके भारतीयोंके प्रति बहुत सहानुभूति पैदा हो जायेगी।
इनके अतिरिक्त और भी बहुत-से कारण दिये जा सकते हैं। अन्तमें हर ट्रान्सवालवासी भारतीयसे मैं इतना ही चाहता हूँ कि इस अवसरको चूका न जाये। पीछे कदम न रखा जाये। नेटाल, केप तथा डेलागोआ बेके भारतीयोंसे याचना करता हूँ कि हम ट्रान्सवालवालोंको हिम्मत देना, और समय आनेपर दूसरी मदद भी करना।
मोहनदास करमचंद गांधी
- [गुजरातीसे]
- इंडियन ओपिनियन, ४-५-१९०७