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४४९. पत्र : 'स्टार' को[१]

बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
अप्रैल ३०, १९०७

सेवामें
सम्पादक
'स्टार'
[जोहानिसबर्ग]
महोदय,

आपने "भारतीय खतरे" का भूत खड़ा किया है और उसका आधार बनाया है। श्री रिचके 'मॉर्निंग स्टार' को लिखे गये योग्यतापूर्ण पत्रको। देशके सौभाग्यसे आपने श्री रिचके पत्रका स्पष्टतः गलत अर्थ लगाया है और उनके मत्थे उस माँगका दोष मढ़ा है, जो उन्होंने की नहीं थी; अर्थात्, ब्रिटिश भारतीयोंकी ओरसे राजनीतिक अधिकारोंकी माँग। यदि आप कृपा करके उस पत्रको फिर पढ़ें तो देखेंगे कि ऐसे किन्हीं अधिकारोंका दावा करने के बजाय श्री रिचने उस दावेका खण्डन किया है। वे कहते हैं :

एशियाइयोंके निर्बाध प्रवेशके विरुद्ध गोरे उपनिवेशवादी संरक्षणकी माँग करते हैं, सो उसकी पूर्तिके रूपमें एक प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके द्वारा शैक्षणिक आधारपर लगायी गई बन्दिशें हमें मंजूर हैं। वे (भारतीय) कोई राजनीतिक सत्ता नहीं चाहते और व्यापारिक परवाने जारी करनेपर नगरपालिकाओंकी सत्ताको स्वीकार करते हैं, बशर्तें कि उन्हें उस सत्ताके अन्यायपूर्ण अमलके विरुद्ध उपनिवेशके न्यायालय में अपील करनेका अधिकार हो।

यदि शब्दों का कोई अर्थ होता हो तो आपके द्वारा प्रकाशित पत्रके उक्त वाक्योंमें समाजपर लगाये गये आपके आरोपका पूरा खण्डन आपके सामने मौजूद है।

इस प्रकार ब्रिटिश भारतीयोंपर दक्षिण आफ्रिकामें राजनीतिक अधिकारोंकी आकांक्षाके आरोपका तो निराकरण हो गया। अब अगर आपकी अनुमति हो तो आपका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करनेकी धृष्टता करूँ कि आप एक ही झंडेके नीचे रहनेवाले दो समुदायोंके बीच विद्वेष भाव उत्पन्न कर रहे हैं। और अपने इस कथनकी पुष्टिमें मैं आपसे ब्रिटिश भारतीय संघ द्वारा प्रस्तावित समझौतेको पढ़नेका अनुरोध करता हूँ। इस समझौतेके द्वारा वे सारी बातें शीघ्र ही हो सकती हैं जो पंजीयन अधिनियम के अन्तर्गत अपेक्षित हैं, और इसके लिए सम्राट्की स्वीकृति की आवश्यकता भी नहीं होगी। मौजूदा शिनाख्तसे ज्यादा सख्त ढंगकी शिनाख्तकी आवाज उठायी जा रही है। ब्रिटिश भारतीयोंने स्वयं प्रस्ताव किया है

  1. यह २९-४-१९०७ के स्टार में प्रकाशित एक लेखके उत्तर में लिखा गया था।