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४५०. पत्र : ट्रान्सवाल अग्रगामी दलको[१]

[जोहानिसबर्ग
मई २, १९०७ के पूर्व][२]

[महोदय,]

एशियाई पंजीयन अधिनियम के बारेमें ट्रान्सवाल अग्रगामी दल (रैंड पायोनियर्स) और ट्रान्सवाल नगरपालिका संघ द्वारा की जानेवाली प्रस्तावित कार्यवाहीके विषय में मैं अपने संघकी ओरसे आपकी समितिका ध्यान ब्रिटिश भारतीयों द्वारा प्रस्तुत दित्सा तथा उस तथ्यकी ओर आकर्षित करता हूँ जिससे पंजीयन अधिनियमकी सारी जरूरतें पूरी हो जाती हैं और जल्दी ही उस उद्देश्य की पूर्ति भी हो जाती है जो आपकी समिति चाहती है।

मेरे संघकी सदा यह मान्यता रही है कि वास्तवमें गोरे उपनिवेशियोंकी माँग और ब्रिटिश भारतीयोंकी तत्सम्बन्धी स्वीकृतिमें बहुत थोड़ा अन्तर है। ब्रिटिश भारतीय किसी प्रकारका राजनीतिक अधिकार नहीं चाहते और १८८५ के कानून ३ की जगह वे व्यापारी परवानोंपर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पुन-र्विचारकी सुविधाके साथ नगरपालिकाका वर्चस्व तथा प्रवासपर नेटाल अथवा केपके ढंगका प्रतिबन्ध स्वीकार करते हैं।

मेरे संघका दृढ़ विश्वास है कि अधिकतर उत्तेजनाका कारण तो पारस्परिक परिस्थिति सम्बन्धी गलतफहमी ही है। इसलिए मेरा संघ यह सुझानेकी धृष्टता करता है कि यदि आपकी समिति मेरे संघ के शिष्टमण्डलसे भेंट करने को तैयार हो तो बहुत-सा संघर्ष खत्म किया जा सकता है तथा निर्बल पक्षके शाही शरणमें गये बिना ही प्रश्नका हल स्थानीय तौरपर ही प्राप्त किया जा सकता है।

मेरे संघको इसमें कोई सन्देह नहीं है कि आपकी समिति रंगदार लोगोंके प्रति अपने आन्दोलनमें किसी बदलेकी भावनासे परिचालित नहीं है। इसलिए आशा है कि मेरे संघ द्वारा बातचीत करने का यह प्रस्तावित सुझाव जिस भावनासे पेश किया गया है उसी भावनासे मान्य किया जायेगा। यदि आपकी समितिको प्रस्ताव स्वीकार्य हो तो ८ तारीख के बादकी कोई भी तारीख मेरे संघके लिए सुविधाजनक होगी।[३]

[स्थानापन्न अध्यक्ष,
ब्रिटिश भारतीय संघ]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ४-५-१९०७
  1. यह पत्र, जिसका मसविदा सम्भवतः गांधीजीने बनाया था, रैंड पायोनियर्स और ट्रान्सवाल नगर-पालिका संघके नाम भेजा गया था, जिन्होंने ट्रान्सवाल पंजीयन अधिनियमके जल्दी लागू किये जाने के लिए आन्दोलन करनेका इरादा घोषित किया था।
  2. बिना तिथि तथा हस्ताक्षरका यह पत्र २-५-१९०७ के रैंड डेली मेलमें प्रकाशित हुआ था।
  3. यह भेंट नहीं हुई; देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ४८२-८५।

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