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४५१. पत्र : 'स्टार' को[१]

[जोहानिसबर्ग
मई २, १९०७ के बाद]

[सेवामें

सम्पादक
'स्टार'
जोहानिसबर्ग

महोदय,]

क्या मैं आपकी बातको दुबारा ठीक कर सकता हूँ? मुझे भय है कि आप समझौतेको अभीतक नहीं समझ पाये हैं। जैसा कि आपने कहा है, नारा यह नहीं है कि भारतीयोंका विश्वास करो। नारा यह है कि अन्तरिम कालमें भारतीयोंका विश्वास करो और देखो कि क्या यह विश्वास उचित नहीं था। पंजीयन कानूनके अधीन सभी भारतीयोंको अनिवार्यतः पंजीयन कराना है। भारतीयोंके प्रस्तावके अनुसार स्वेच्छापूर्वक उनका पंजीयन किया जा सकता है, और वह भी अभी। लेकिन मान लीजिए कि यदि निम्नतम वर्गके भारतीय, जैसा कि आपने कुछ भारतीयोंको वर्गीकृत किया है, उपनिवेशमें आयें और ब्रिटिश भारतीय संघ के प्रस्तावको स्वीकार न करें तो स्थितिकी कुंजी तो सरकारके हाथमें है ही। तब ऐसा विधेयक पास किया जा सकता है जो समझौते के अनुसार जारी किये गये अनुमतिपत्रोंके अलावा शेष सभी परवानोंको, जबतक कि उनको किसी निश्चित समयके अन्दर बदलवा न लिया जाये, रद्द कर देगा। तब कानून अपराधियोंको पकड़ लेगा और निर्दोष व्यक्तियोंको स्वतन्त्र छोड़ देगा। इस समय यह कानून कुछ थोड़े-से अपराधियोंके कारण अधिकांश निर्दोष, आत्मसम्मानित लोगोंको दण्ड देता है। आप भारतीय समाजको अत्यधिक तुनकमिजाज बताकर उनके एतराजोंको खारिज कर देते हैं। वैसे ही आप लॉर्ड ऐम्टहिल और उनके मित्रोंको भी बिना शिष्टाचारके, मैं समझता हूँ, "पूर्वीपनका दोष" लगाकर खारिज कर देते हैं और उनको एक व्यापक साम्राज्यीय भावनाके अधिकारसे वंचित कर देते हैं। मैं आपको केवल इस बातकी याद दिला सकता कि लॉर्ड मिलनरने, जिनको आप लॉर्ड ऐम्टहिलकी श्रेणीमें नहीं रखेंगे, 'नेशनल रिव्यू' में छपे अपने लेखमें, उपनिवेशियोंको अधिक व्यापक साम्राज्यवादकी याद दिलाते हुए ब्रिटेनके अधीन देशों—विशेषकर ब्रिटिश भारतके बारेमें उनकी जिम्मेदारियोंको उनके सामने रखा है।

आपका आदि,
मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ११-५-१९०७
  1. ३० अप्रैलको स्टारको एक पत्र (पृष्ठ ४६३-६४) लिखनेके बाद गांधीजीने पत्रके सम्पादकसे मिलकर बातचीत की। स्टारने इस विषयपर दुबारा लिखा जिसका गांधीजीने यह जवाब दिया। देखिए "जोहानिसबर्ग की चिट्ठी", पृष्ठ ४८२-८५।