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४५२. क्लार्क्सडॉर्पके भारतीय और स्मट्स

क्लार्क्सडॉर्पके भारतीयोंने ट्रान्सवालके कार्यवाहक प्रधान मन्त्री श्री स्मट्सको मानपत्र दिया तथा उन्होंने उसका उत्तर दिया। दोनोंका विवरण हम दूसरी जगह विशेष तौरसे दे रहे हैं। उसमें हम देखेंगे कि स्वयं श्री स्मट्सको ही डर है कि भारतीय समाज यदि जेलका प्रस्ताव कायम रखेगा तो उनका कानून मंजूर हो जानेपर भी बेकार हो जायेगा। इसलिए उन्होंने सबको समझाया है कि संघ कानूनका जो विरोध कर रहा है वह बेकार है। इतना तो श्री स्मट्स स्वयं भी स्वीकार करते मालूम होते हैं कि ट्रान्सवालमें कुछ नये लोग नैतिकतासे गिरे हैं, और उनके कारण सारे समाजको सजा देनेवाला यह कानून बना है। और यह भी हो सकता है कि कुछ समय तक पुलिस कोने-कोने पूछती फिरे। कुछ समय का क्या अर्थ है, यह तो वे ही जानें! ऐसा कानून तो भारतीय समाजको स्वीकार होना ही नहीं चाहिये। इस सम्बन्धमें कोई विवाद नहीं। श्री स्मट्सका भाषण भारतीय समाजके लिए उत्तेजनात्मक माना जाना चाहिए। वे तो यही समझते जान पड़ते हैं कि भारतीय समाजपर जुल्म करना मामूली बात है। मुझे लगता है कि समाजको उनकी आँखें खोलनेका मौका मिलेगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ४-५-१९०७
 

४५३. केपके भारतीय

केपका प्रवासी कानून इतना अटपटा है कि उसका असर आज तो नहीं मालूम हो रहा है, फिर भी धीरे-धीरे बहुत बुरा होगा। उसकी एक धारा बहुत ही कठिन है। वह है : जो भारतीय अनुमतिपत्र लिये बिना जायेगा, उसे वापस आनेका अधिकार नहीं रहेगा। यानी मान लें कि केपके प्रमुख सेठों में से कोई वार्षिक अनुमतिपत्रके बिना बाहर जाता है, तो वह लौट नहीं पायेगा। उसका व्यापार केपमें चालू हो, बाल-बच्चे भी वहीं हों, फिर भी उसे उनका लाभ नहीं मिल सकता। यहाँ हम यह नहीं कह रहे कि ऐसे सेठपर यह कानून ऐसे भयानक रूपसे लागू किया जायेगा, बल्कि हमें तो यह दिखाना है कि कानूनका असर ऊपर लिखे अनुसार होगा। परिणाम यह होगा कि केपमें से सारे गरीब भारतीय निकल जायेंगे। यदि ऐसा हो तो केपमें थोड़े-से भारतीय रह जायेंगे। उनका प्रभाव क्या हो सकता है? इसलिए केपके सभी नेताओंको सावधान रहना चाहिए कि कोई भी भारतीय अनुमतिपत्र लिये बिना केप न छोड़े। हमें आशा है कि यह जानकारी केपके जिस किसी भारतीयके पढ़ने में आयेगी वह अन्य भारतीयको पढ़नेके लिए देगा और समझायेगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, ४-५-१९०७