पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/५०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४६९
भेंट : 'नेटाल मर्क्युरी' को


श्री गांधीको बताया गया कि सम्भवतः प्रस्तावका मंशा उष्णकटिबन्ध-स्थित उपनिवेशोंको आगामी प्रवासियोंके लिए सुरक्षित रखनेका है; लाजिमी तौरपर उसका इरादा जिन भारतीयोंको निवासके अधिकार प्राप्त हो चुके हैं उन्हें हटानेका नहीं है। पूछा गया कि इस विचारके बारेमें उनका क्या खयाल है।

श्री गांधीने कहा कि भारतमें जनसंख्याका इतना दबाव नहीं है कि उसके कारण प्रवास आवश्यक हो और उन्होंने इस तथ्य की ओर इशारा किया कि जो भारतीय गिरमिटियोंकी तरह लाये गये थे वे खुद-ब-खुद नहीं आये थे, उन्हें आनेके लिए फुसलाया गया था और अब भर्ती दिन-ब-दिन मुश्किल होती जाती है। दूसरी जिन जगहों में भारतीय भरतीकी जरूरत है, वहाँ भी यही बात लागू होती है। यह उन्होंने यही बतानेके लिए कहा कि भारत में आबादीका कोई वास्तविक बाहुल्य नहीं है और उसे किसी निर्गमनकी जरूरत नहीं है। इसलिए भारतके बाहर केवल भारतीयोंको बसानेके लिए किसी अंचलको सुरक्षित रख छोड़नेका विचार फाजिल और गैरजरूरी है। उनकी रायमें भारतके अपने साधन इस हद तक नहीं चुक गये हैं कि वह अपनी जनता अथवा जनसंख्यामें होनेवाली स्वाभाविक वृद्धिका भरण-पोषण न कर सके। भारतमें जिसे उन्होंने "अन्तर्देशीय निर्गमन" कहा, उसकी गुंजाइश तो है, किन्तु इसके लिए देशके बाहर किसी क्षेत्र निर्धारणकी जरूरत नहीं है।

श्री गांधीने आगे कहा कि उनसे अक्सर पूछा गया है कि यदि ऐसा है तो भारतीय इतनी बड़ी तादाद में दक्षिण आफ्रिका क्यों आते हैं। इसका यह जवाब है कि झंझट तो गिरमिटियोंके प्रवासको पद्धति अपनाकर स्वयं दक्षिण आफ्रिकाने पैदा की है। श्री गांधीने कहा कि यह ऐसी पद्धति है जिसके खिलाफ यदि अर्जी दी जाये तो दक्षिण आफ्रिकाका हर भारतीय उसपर अपने हस्ताक्षर कर देगा और उसे खत्म करनेको कहेगा।

[संवाददाता :] किन्तु, श्री गांधी, परेशानी गिरमिटिया भारतीयोंके कारण उतनी नहीं होती जितनी स्वतन्त्र व्यापारीवर्गके कारण होती है और ज्यादातर व्यापार करनेके समानाधिकारोंकी माँग तो वे ही करते हैं।

[गांधीजी :] भारतीय व्यापारीके व्यापारका जिन अन्य भारतीयोंपर दारोमदार है वह उनके पीछे-पीछे जाता है। अगर गिरमिटिया यहाँ न आता तो व्यापारी भी यहाँ न आता। आज भी जबरदस्त लेन-देनवाले ऊँचे तबकेके भारतीय व्यापारियोंमें से बहुत-से अपने ही देशमें रहते हैं; वहाँ उन्हें व्यापार करनेकी गुंजाइश है; और यदि उपनिवेशोंमें आनेके बजाय वहीं रहना पसन्द किया जाये तो वहाँ हरएक भारतीय व्यापारीके लिए गुंजाइश है। भारतीय व्यापारीको जहाँ अपने देश बन्धुओंमें व्यापारका अवसर दिखाई देता है वह वहाँ जाता है।

. . .श्री गांधीने जंजीबारका उदाहरण दिया। चूँकि पूर्वी आफ्रिका खुला हुआ ही है, भारतीयोंकी बस्ती के लिए उष्णकटिबन्ध-स्थित उपनिवेशोंको सुरक्षित रखने की कोई आवश्यकता नहीं है ।

इसके बाद श्री गांधीने ट्रान्सवालके पंजीयन अध्यादेशका जिक्र किया और शाही शासन द्वारा इस कदमको स्वीकृत किये जानेके निर्णयपर निराशा प्रकट की। उन्होंने कहा कि इसके फलस्वरूप ट्रान्सवालके भारतीयकी स्थिति उस कैदीकी-सी हो गई है जिसकी हथकड़ी-बड़ी कामके वक्त खोल दी जाती है। यदि उनके साथ इस तरहका बर्ताव किया जाता है तो बेहतर है कि