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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

यह धोखाधड़ी तत्काल खत्म कर दी जाये। श्री गांधीने कहा कि सम्भव है कि भविष्यमें ब्रिटेनको उपनिवेश अथवा भारतमें से एक छोड़ना पड़े, क्योंकि यह एक राष्ट्रके आत्माभिमानका प्रश्न है; ट्रान्सवालकी आजकी हालतों में उनका अस्तित्व असह्य हो जायेगा। भारतीय पूरी तरह प्रश्नके दोनों पहलू समझने में समर्थ है और वह उन्हें समझता है, किन्तु, उन्होंने कहा, ट्रान्सवाल अध्यादेश जैसे उपायोंसे एशियाई समस्या हल नहीं हो सकती।

श्री गांधीसे जब यह पूछा गया कि क्या वे अध्यादेशके पास किये जानेका यह मानते हैं कि दक्षिण आफ्रिकामें भारतीयोंकी स्थिति कमजोर हो गई है तब उन्होंने कहा कि निःसन्देह बात ऐसी ही है। किन्तु उन्होंने भरोसा भी व्यक्त किया कि यदि भारतीय अपने प्रतिरोधके निश्चयपर दृढ़ रहे तो उनकी आशाओंपर होनेवाला तुषारपात अन्तमें लाभदायी सिद्ध होगा। श्री गांधीने कहा कि प्रतिरोध शारीरिक शक्तिसे नहीं होगा; वह अनाक्रामक प्रतिरोध होगा और यदि अध्यादेशको माननेके बदले भारतीय अपने जेल जानेकी प्रतिज्ञापर अटल रहे तो, उनकी समझमें, उपनिवेशके गोरोंमें इतनी अच्छाई है कि उनसे सिद्धान्तके लिए ऐसे साहसके प्रति प्रशंसा और, अन्तमें, सहानुभूति भी मिलेगी।

[अंग्रेजीसे]

नेटाल मर्क्युरी, ८-५-१९०७

 

४५६. छगनलाल गांधीको लिखे पत्रका अंश[१]

[मई ११, १९०७ के पूर्व][२]

डर्बनका काम पूरा हो जानेपर कल्याणदासको दूसरे गाँवोंमें भेजना।

ज्यादा पत्र हरिलालसे लिखवाना। हस्ताक्षर तुम ही करना। हरिलाल सारा काम तुम्हारी देख-रेख में करे। गुजराती विभागके मुख्य सम्पादक तुम्हीं माने जाओगे। किन्तु फिलहाल तुम निगरानी रखो, इतना काफी है। यदि हरिलाल दोनों प्रूफ न पढ़ सके तो गुजराती प्रूफ तुम्हें ही पढ़ने पड़ेंगे।

किन्तु मेरी तुम्हें यह सलाह है कि जहाँतक सम्भव हो, फिलहाल बहीखातोंके सिवा दूसरा बोझ अपनेपर कम रखो।

बहीखाते नियमित हो जायेंगे और तलपट बन जायेगा तब तुम्हें. . .बहीखाते. .‌‌‌ .

गांधीजी स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रतिकी फोटो नकल (एस॰ एन॰ ६०८०) से।

  1. इस पत्रका केवल पाँचवाँ और छठा पृष्ठ उपलब्ध है। किन्तु पत्रकी सामग्रीसे स्पष्ट है कि यह छगनलाल गांधीको फीनिक्सके पतेपर लिखा गया था।
  2. फीनिक्सके कामसे २३ अप्रैलको कल्याणदास डर्बनमें थे। (देखिए "पत्र : कल्याणदास मेहताको", पृष्ठ ४५०)। यह पत्र, स्पष्टतः, उसी तारीखको या उसके बाद लिखा गया है। वे उमर हाजी आमद झवेरीके साथ एक ही जहाजपुर दक्षिण आफ्रिकासे भारत के लिए रवाना हुए। (देखिए "कल्याणदास जगमोहनदास [मेहता]" पृष्ठ ४७५); यह मई ६, जब कि श्री झवेरीके सम्मानमें अनेक विदाई समारोह आयोजित किये गये थे, और मई ११ के बीचकी बात है जब श्री कल्याणदासके सम्बन्धमें इंडियन ओपिनियनमें लेख प्रकाशित हुआ था।