पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/५०७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

 

४५७. क्या भारतीय गुलाम बनेंगे?

हम जितना सोचते थे उससे जल्दी ट्रान्सवालका कानून पास हो गया है। उपनिवेशमें भारतीयोंको बेड़ीसे जकड़नेके लिए बड़ी सरकारने यह पहला कदम ठीक समझा है। अब यह प्रश्न है कि भारतीय समाज यह जूआ कन्धेपर लेगा या नहीं।

हमें मालूम है कि एक बार जोहानिसबर्ग में किसी वकीलके यहाँ एक नौजवान जापानी विद्यार्थी अपने कामके लिए गया था। वकीलके उसी समय न मिलनेके कारण वह बाहर खड़ा राह देख रहा था। इसी बीच वकीलसे मिलनेके लिए कोई अंग्रेज अधिकारी आया। वह एकदम वकील के दफ्तरका दरवाजा ठोक कर अन्दर घुसने ही वाला था कि जापानी युवकने उसका हाथ पकड़ कर कहा—आप अभी नहीं जा सकते, पहला हक मेरा है। अधिकारी समझदार था। वह समझ गया। उसे जरूरी काम था, इसलिए उसने पहले जानेकी अनुमति माँगी। विद्यार्थी जैसा बहादुर था वैसा ही समझदार भी था। इससे जब अधिकारीने अनुमति माँगी तो उसने तुरन्त दे दी। यह बात प्रत्येक भारतीयको अपने हृदय में लिख रखनी चाहिए। क्योंकि इससे हमारे गुलामीके चिट्ठेकी सही कल्पना होती है। उस जापानीने अपना अपमान सहन नहीं किया। इस प्रकार राजा और रंक सभीने जब जापान- पर अभिमान रखा तभी वह स्वतन्त्र हुआ, उसने रूसको थप्पड़ मारा और आज उसका झण्डा बहुत जोरोंसे फहरा रहा है। आज जापान यद्यपि पीले रंगका है, फिर भी वह गोरे रंगके इंग्लैंड के साथ समानताका हक रखता है। उसी प्रकार हमपर अपने स्वाभिमानका रंग चढ़ना चाहिए। बहुत समयसे हम तोते के समान पिंजरे में पड़े हुए हैं, इसलिए स्वाभिमान क्या है, स्वतन्त्रता क्या है, यह नहीं जान सकते। इसके अलावा, जैसे तोतेको सुनहरी जंजीर बांधकर नचाया जाता है तो वह फूलकर कुप्पा हो जाता है, उसी प्रकार हमारे रक्षक—फिर वे गोरे हों या काले—हमारे मनसे गुलामीका भान भुलाने के लिए सोनेकी जंजीर पहनाकर जब प्यार व्यक्त करते हैं तब हमारा मन भी छलक उठता है, और यह मानकर कि हम कितने सुखी हैं, हम लाल-गुलाल हो जाते हैं। उस दशाका भान करानेके लिए यह डंकदार कानून पास हुआ है। और अब हम उसके अनुसार चलकर गुलाम बनेंगे या नहीं? हमारा जोहानिसबर्गका संवाददाता लिखता है कि कानून के अन्तर्गत जो नियम बनाये जानेवाले हैं वे नरम होंगे। यानी लॉर्ड एलगिन हमारे गलेमें सुनहरा डोरा लटकायेंगे ही। लेकिन क्या उससे हम अपने इस आत्म-बोधको भूल जायेंगे? हम तो दोनों प्रश्नोंके उत्तरमें साफ नहीं ही कह सकते हैं।

इस कानून को हटाने के लिए बहुत ही मेहनत करनी है और कभी पीछे पाँव नहीं रखना है। जरा उस सम्बन्ध में विचार करें। सितम्बर मासमें एक जबरदस्त सभा करके जाहिर किया गया था कि भारतीय समाज इस कानूनको स्वीकार करने के बजाय जेल जायेगा[१]। यह निर्णय करते समय सबने खुदा या ईश्वरकी शपथ ली थी। यद्यपि वह कानून उस समय रद हो गया था, फिर भी अभी जो पास हो रहा है, वह भी वही कानून है। जितनी दलीलें उसके

  1. चौथा प्रस्ताव; देखिए खण्ड ५, पृ४ ४३०-३४।