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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

गया। ऐसा और इतना ही अन्तर इस नये कानूनके अन्तर्गत रहने और उससे मुक्त रहने में है। हमें जमीन अधिकार न हों, हमारा व्यापार कम हो, और हमें दूसरे कई अधिकार न दिये जायें, यह सहन किया जा सकता है। क्योंकि उस वक्त हमें विवश नहीं किया जा सकता। किन्तु इस कानूनके द्वारा हमारे विवश किये जाने की बात है। जैसे हमारे देश भारत में हममें से कुछ लोग जुल्म करके भंगियोंको विशेष पोशाक ही पहनने देते हैं, और हम छू न जायें इसके लिए उन्हें हलकी भाषा काममें लाने के लिए मजबूर करते हैं, उसी तरह ट्रान्सवाल में हमें भी भंगी बन कर रहना पड़ेगा। और हमें अपनी इस स्थितिकी याद रहे, इसके लिए चिट्ठी रखनी होगी। जर्मनीके महान लूथरके नाम पोपने जासूसकी मारफत कोई हुक्म भेजा तो लूथरने जासूसके सामने ही उस चिट्ठीको जला दिया, और कहा कि जा, पोपसे दे कि कह आजसे स्वतन्त्र है। इस चिट्ठीका हाल उसे कह सुनाना। लूथर दिनसे लूथर आजतक अमर है। और वैसा करना चाहेंगे करोड़ों व्यक्ति, किन्तु एक भी नहीं कर सकेगा।

उपाय

अब हम क्या करें, यह कई पाठक इस 'चिट्ठी' के द्वारा जानना चाहेंगे। जवाब तो लूथरने ही दे दिया है। हम इतनी स्वतन्त्रता भोगने योग्य हो गये हैं कि नये अनुमतिपत्रों के साथ पुराने अनुमतिपत्र भी जला दें। अब यह स्थिति नहीं रही कि एक भी मनुष्य अनुमतिपत्र कार्यालय जाये। यदि किसीको अनुमतिपत्र मँगवाना होगा तो वह नये कानूनके अन्तर्गत ही मँगवा सकेगा। किन्तु यदि वह कानून हमें मंजूर न हो तो हम अनुमतिपत्र मँगवा ही नहीं सकते। इसलिए पहला काम तो यह करना रहा कि अनुमतिपत्र कार्यालयमें कोई भी भारतीय न जाये, न पत्र-व्यवहार करे। शेष तो हमें फिलहाल देखते रहना है कि अनुमति-पत्र कार्यालय हमारे द्वारा नये अनुमतिपत्र निकलवाने के लिए क्या-क्या तरकीबें करता है। भारतीयोंको अभी तुरन्त तो जेलका लाभ नहीं मिलेगा। अभी अनुमतिपत्रके नियम बनाने बाकी हैं। फिर अनुमतिपत्र लेनेका अन्तिम दिन निश्चित किया जायेगा और उस दिनके बाद जेल-महल में जाया जा सकेगा। इसलिए हम सावधान हैं, निर्भय हैं, और अपने प्रस्तावपर निश्चित रूपसे अमल करनेवाले हैं, यह सिद्ध करनेके लिए हम अनुमतिपत्र कार्यालयका बहिष्कार कर दें। ट्रान्सवालमें बाहरसे बिना अनुमतिपत्रके निराश्रित भारतीयोंके आनेका विचार फिलहाल हमें छोड़ देना है। क्योंकि उन्हें यदि अनुमतिपत्रकी आवश्यकता होगी तो नये कानूनके अन्तर्गत ही मिल सकता है। लेकिन वह तो किसी भारतीयसे हो ही नहीं सकता। मुझे आशा है कि सारे भारतीय इतना उत्साह रखेंगे कि खुदाबन्द करीम ट्रान्सवालके बाहर भी हमें रोजी देनेकी ताकत रखता है। विशेष बातें 'इंडियन ओपिनियन' अंक १७, पृष्ठ २१६ देखनेसे समझमें आ जायेंगी।

लॉर्ड एलगिनका मरहम

एलगिन साहब हमें घातक चोट करके अब इलाजके तौरपर अपना बनाया हुआ खास मरहम लगाना चाहते हैं। रायटरका तार है कि चर्चिलने कानूनके सम्बन्ध में जवाब देते हुए कहा है कि जनरल बोथासे बातचीत हुई है। उन्होंने कहा है कि कानूनके अन्तर्गत जो नियम बनाये जायेंगे वे बहुत ही नरम और ऐसे होंगे कि उनसे किसीकी भावनाओंको चोट न लगे। इस ख़बर के आधारपर रायटर और लिखता है कि लोकसभा में सदस्योंने खुश होकर