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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिया है। देखें, क्या होता है। आजतककी बातें कह चुका। अब अधिक कहनेकी जरूरत नहीं है। जो कतरनें भेज रहा हूँ उन्हें सावधानीसे देख जाइये। वे पठनीय हैं। सबको मेरा स्नेह समादर। अलगसे किसी औरको लिखनेका समय नहीं है। अभी ही, जब कि पत्रका यह भाग लिखाया जा रहा है, आठ बजनेमें पाँच मिनट रह गये हैं। आपके आत्मीयोंसे फिर इतवारको मुलाकात होगी।

कृपया यह पत्र श्री वेस्टको भेज दें, ताकि जो मैंने इस पत्र में कहा है, मुझे उनके पत्र में दुहराना न पड़े। मैं नहीं समझता, जिन व्यक्तिगत बातोंका मैने पत्रमें उल्लेख किया है उनके कारण उन्हें पत्र देने में कोई बाधा हो सकती है। 'टाइम्स' को हमने जो पत्र[१] लिखा है उसकी पूरी प्रतिलिपि आपको नहीं भेज रहा हूँ। क्योंकि आप उसे 'इंडिया' में उद्धृत देख लेंगे। 'इंडिया' की इस सप्ताहकी प्रतिमें आप श्री नौरोजीके कांग्रेसके अध्यक्ष चुने जानेके बारे में कुछ देखेंगे। आपको अखबारमें उसकी चर्चा करनेकी जरूरत नहीं है। कारण समझानेका समय नहीं है। यदि जरूरत होती तो यहाँसे उसपर लिख भेजता। 'उमफली' जहाजपर भारतीय गिरमिटिया मजदूरोंके प्रति होनेवाले व्यवहारके बारेमें आप 'इंडिया' से दो टिप्पणियाँ उद्धृत कर सकते हैं। उनपर सम्पादकीय विचार व्यक्त न करें।

आपका शुभचिन्तक,

[श्री हेनरी एस० एल० पोलक
बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
दक्षिण आफ्रिका]

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४४०६) से।

१९. पत्र: ए० एच० वेस्टको

होटल सेसिल
लन्दन
अक्तूबर २६, १९०६

प्रिय श्री वेस्ट,

पिछले शनिवारके बादसे मुझे साँस लेनेका समय नहीं मिला है और एक रातके सिवा एक बजेके पहले बिस्तरपर नहीं जा पाया हूँ। मैंने पोलकको एक बहुत लम्बा पत्र[२] लिखा है और कहा है कि वह आपके देखने के लिए भेज दें। कृपया आप स्वयं उसे पढ़ लें और छगनलालको दिखा दें। उससे मेरी गतिविधिके बारेमें आप विस्तारसे जान जायेंगे। यह पत्र ८-३० बजे रातको टाइप किया जा रहा है, अतएव, आप मुझे लम्बा पत्र न दे सकनेके लिए क्षमा करेंगे। मुझे दिखता है कि यहाँ मैं अपने मुकामके अन्ततक व्यस्त रहूँगा। ऐसी हालतमें पूरे एक दिनके लिए लन्दनसे गैरहाजिर होना कठिन है। इसलिए मैंने कुमारी पायवेलसे[३] लन्दनमें समय तय करके मिलनेको कहा है और, अगर आप देने दें तो, खर्च

  1. देखिए "पत्र: 'टाइम्स' को", पृष्ठ ४-६ ।
  2. देखिए पिछला शीर्षक।
  3. एडा पायवेल, बाद में श्रीमती वेस्ट।