देनेका भी प्रस्ताव किया है। बस, अब उनके आनेकी ही प्रतीक्षा है। श्री मुकर्जीसे मैंने उनके लेखोंके बारेमें बातचीत की है।
आपका शुभचिन्तक,
श्री ए० एच० वेस्ट
'इंडियन ओपिनियन'
फीनिक्स
नेटाल
टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४४०१) से।
२०. पत्र: छगनलाल गांधीको
होटल सेसिल
लन्दन
अक्तूबर २६, १९०६
चि० छगनलाल,
मुझे एक क्षणका अवकाश नहीं है। रातके ८-३० बज गये हैं और गुजराती संवादपत्रको छुआ नहीं है। बने तो मैं एक अग्रलेख[१] और 'आमडेल' से जो भेजा था उसके आगेका संवादपत्र[२] तुम्हें भेजना चाहता हूँ। जितना बन सकेगा उतना लिखूँगा; शेष तुम श्री पोलकके नाम मेरे लम्बे पत्रसे[३] जान लेना। मैंने लिख दिया है कि वह पत्र वहाँ भेज दिया जाये। श्री वेस्ट अपनी बहनको वहाँ ला रहे हैं। मेरा खयाल है, यह बुद्धिमानीका काम है। वे सीधी और तत्पर महिला लगीं। हमें वहाँ कुछ अंग्रेज महिलाओंकी आवश्यकता है ही। उनका अच्छेसे-अच्छा उपयोग करना। तुम्हारी पत्नी और अन्य महिलाएँ उनसे खुलकर मिलें-जुलें और उन्हें ऐसा अनुभव हो कि हममें और उनमें अन्तर नहीं है। उन्हें, जितना बने, आराम देना। महिलाएँ, उनसे जो सीखा जा सकता है, वह सब सीखें और उन्हें जो सिखा सकती हों, सिखायें। परस्पर सीखनेके लिए दोनों पक्षोंके पास खासी अच्छी बातें हैं। मैं आशा करता हूँ कि सब स्त्रियाँ छापाखानेमें जाती हैं--विशेषतः शनिवारको। इस दिशा में सच्चा प्रयत्न किया जाना चाहिए। आनेके पहले मैं लन्दनके संवादपत्रको अच्छी तरह जमा देना चाहता हूँ।
तुम्हारा शुभचिन्तक
,
श्री छगनलाल खुशालचन्द गांधी
'इंडियन ओपिनियन'
फीनिक्स
नेटाल
टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४४०२) से।