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४७२. लेडीस्मिथको लड़ाई

परवाने के सम्बन्धमें भारतीयोंकी फिर हार हुई है। उसके बारेमें जरा ज्यादा विचार करना आवश्यक है। ट्रान्सवालमें जो लड़ाई चल रही है, लेडीस्मिथकी लड़ाईको उसीसे मिलती-जुलती समझना चाहिए। हमें आशा है कि एक भी भारतीय व्यापारी अपनी दुकान बन्द नहीं करेगा। जैसे अनुमतिपत्र न लेनेवाले लोग ट्रान्सवालमें जेल जा सकते हैं वैसा नेटालके भारतीय व्यापारी नहीं कर सकते। क्योंकि परवाना कानूनके अनुसार उनपर बिना परवानेके व्यापार करने के अपराधमें जुर्माना ही किया जा सकता है। यदि कोई जुर्माना न दे तो उसे जेलकी सजा नहीं है। इसलिए केवल सरसरी तौरसे देखें तो कुछ गड़बड़ी मालूम होती है। किन्तु वास्तवमें कुछ भी गड़बड़ी नहीं है। बिना परवानेके व्यापार करनेपर कानूनके अनुसार जो जुर्माना होगा, यदि वह न दिया जाये तो उसका नतीजा यह होगा कि सरकार माल नीलाम करके जुर्माना वसूल कर लेगी। यह अवसर ऐसा है कि यदि माल नीलाम हो तब भी लोगोंको डरना नहीं चाहिए। हम माल नीलाम होने देंगे तभी सरकारकी आँख खुलेगी कि हमपर कितना जुल्म होता है। हम स्वयं लेडीस्मिथ के विषयमें तो जानते ही हैं कि सरकार खुद ही लेडीस्मिथके प्रस्तावसे नाराज है। और ज्यादातर किसीपर मुकदमा नहीं चलेगा। लेकिन लेडीस्मिथके लिए जैसा आज हुआ है वह यदि सब जगह हो तो बड़ी मुसीबत होगी, और लोग बरबाद हो जायेंगे। जैसे जेल जानेका उत्साह दिखाना है वैसे ही माल नीलाम होने देनेका उत्साह दिखाना भी जरूरी है। इस सम्बन्ध में भी हम अंग्रेजोंका अनुकरण करनेको ही कह सकते हैं। दो वर्ष पहले जब विलायतमें शिक्षा-कानून लागू किया गया, तब बहुतेरे लोग शिक्षा-कर देने को राजी नहीं थे। वह कर यदि लोग न दें तो वसूल करनेका एक ही रास्ता था और वह था कि उनका सामान नीलाम किया जाये। जो उस करके खिलाफ थे उन्होंने कर देने से इनकार किया और अपना सामान नीलाम होने दिया। नतीजा यह हुआ कि अब उस करको रद करनेकी तैयारी हो रही है। हम मानते हैं कि परवानेकी मुसीबत आ ही जाये और दूसरी किसी तरहसे सुनवाई न हो तो हमें उपर्युक्त मार्ग अपनाना चाहिए। वैसा करनेमें इतनी बात निश्चित होनी चाहिए कि व्यापार करनेवाले भारतीयकी दूकान, घर, बहीखाते वगैरह सब अच्छी हालत में हों। हम यह मानते हैं कि यदि भारतीय कौम ट्रान्सवाल में अपना वचन निबाह लेगी तो उसका नेटालपर भी अच्छा प्रभाव हो सकता है।

[गुजराती से]
इंडियन ओपिनियन, १८-५-१९०७