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जोहानिसबर्गफी चिट्ठी

समाजको होता है। इस महान लाभके लिए जितना भी नुकसान उठाना आवश्यक हो, उतना उठाया जाये। मैं मानता हूँ कि जेल जाना ख़ुदा अथवा ईश्वरको प्यारा है, और हम जो कुछ उससे डरकर करते हैं उसमें वह जगतका सिरजनहार हमेशा सहायता करता है; तथा हमारी उसपर जितनी श्रद्धा होती है उतना फल मिलता है। एक दफा मुहम्मद पैगम्बर और उनके शिष्य एक गुफा थे। एक फौज उनका पीछा कर रही थी। शिष्य भयसे बोल उठे : "हे पैगम्बर, हम तो सिर्फ तीन ही हैं और फौज में तो सैकड़ों मनुष्य हैं; उससे कैसे बचेंगे?" पैगम्बरने जवाब दिया, "हम तीन ही नहीं हैं, सबसे निबट लेने की शक्ति रखनेवाला खुदा भी हमारे साथ ही है।" इस तरहके अलौकिक विश्वाससे पैगम्बरने जो कुछ भी किया उसमें सफलता प्राप्त की। शत्रु उन्हें जरा भी कष्ट नहीं पहुँचा सके। शत्रु यद्यपि गुफाके पाससे गुजरे, फिर भी उन्हें भीतर जानेका विचार तक नहीं आया। इसी तरह यदि हम भारतीय धर्मग्रन्थ देखें तो मालूम होगा कि ईश्वरके अटल भक्त प्रह्लादने धकधक करते हुए लाल सुर्ख खम्भेको पकड़ लिया, फिर भी उसे कोई नुकसान नहीं पहुँचा। क्योंकि, उसे ईश्वरकी सहायतापर अटल विश्वास था। उसी तरह जो भारतीय ईश्वरको बीचमें रखकर यह साहसका काम करता है, उसे किसी भी प्रकार चिन्ता नहीं करनी चाहिए। सच्ची नीयतवालेकी बात बनाये रखनेवाला और इज्जतकी रक्षा करनेवाला परमेश्वर सदा और सर्वत्र हाजिर है। इस जवाब में यद्यपि तकदीरपर भरोसा रखनेकी बात है, फिर भी यह हम जानते हैं कि बिना तदबीरके तकदीर बेकार रहती है, इसलिए तदबीर अवश्य करते रहना है।

उत्तर दूसरा : पहले उत्तरको हमेशा खयालमें रखकर ही तदबीरके सम्बन्धमें विचार करना चाहिए। सच्चे दिलसे ईश्वरपर श्रद्धा न रखनेवालोंके लिए श्री कुवाड़ियाने जो एक उपाय बताया है सो यह है कि दुकानके सब लोगोंको एक साथ ही यदि जेल ले जायें तब भी जाना चाहिए। जेल से छूटने के बाद दूकानके मुख्य व्यक्तिके बजाय दूसरे किसीको (कानूनपर अमल करनेकी दृष्टिसे नहीं बल्कि उसे रद करवानेके लिए) अनुमतिपत्र लेकर दुकान खुलवानी चाहिए। इस प्रकार करनेसे हर व्यक्ति जेलसे तैयार होकर निकल सकेगा।

उत्तर तीसरा : यदि किसीको यह मालूम हो कि दूसरे उत्तरके अनुसार नहीं किया जा सकता, तो दूकान के मुखियाको छोड़कर दूसरे किसी भी व्यक्तिके नामसे 'गजट' में नये अनुमति-पत्र लेने की जो अन्तिम तारीख रखी गई हो उस तारीखको अनुमतिपत्र ले लिया जाये।

उत्तर चौथा : मेरे पूर्व लेखोंके अनुसार पाठकोंको याद होगा कि किसी भारतीयके लिए जेल में जानेका मौका आनेके पहले उसे ट्रान्सवाल छोड़नेकी सूचना मिलेगी।[१] उस सूचनाकी अवधि बीत जाने के बाद उसे पकड़ा जायेगा और फिर जुर्मानेकी और जुर्माना न देनेपर जेलकी सजा होगी। उस वक्त जुर्माना देनेके बजाय जेल तो भोगना ही है। अतः जब सूचना मिले तब सूचनाकी अवधि में व्यापारी अपने पासके मालका कब्जा अपने कर्जदारों को दे सकता है। यह उपाय छोटे व्यापारियोंके लिए बहुत ही अच्छा है। जेलसे बाहर आनेपर उस व्यक्तिको अपनी रोजी कमानेमें जरा भी कठिनाई होना सम्भव नहीं है।

पत्नी, बच्चोंका क्या किया जाये?

औरतों और सोलह वर्ष से कम उम्र के लड़कोंको पकड़नेका अधिकार कानूनमें नहीं है। अतः उन्हें अपने पति तथा माता-पिताका वियोग भोगनेके सिवा और कुछ भी नहीं रहता।

  1. देखिए "जोहानिसबर्गेकी चिट्ठी", पृष्ठ ४३२-३५ और ४५३-५७।