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जोहानिसबर्ग की चिट्ठी

जाये। एक ही अँगूठा लगवाये, तो लगाया जाये। नये अनुमपित्र लेनेके लिए कहे तो साफ इनकार किया जाये और कहा जाये कि नया अनुमतिपत्र लेनेका बिलकुल इरादा नहीं है। न लेने से यदि सरकार जेल भेजेगी तो वह भी मंजूर है। जबरदस्ती या छीनकर अनुमतिपत्र ले जानेका पुलिसको अधिकार नहीं है। इसलिए यदि पुलिस कुछ धमकी दे तो हिम्मत रखकर जवाब दिया जाये कि अनुमतिपत्र नहीं दिया जायेगा। और कहीं कुछ भी ऐसी बात हो तो उस सम्बन्ध में संघको लिखकर खबर दी जाये। इन्हीं भाईने पूछा है कि चौथे प्रस्तावके अनुसार जेल जानेवालोंके बाद जो लोग बचेंगे उनकी क्या व्यवस्था होगी और संघ वकील वगैरहका खर्च देगा या नहीं, वगैरह। इन प्रश्नोंके उत्तर ऊपर दिये जा चुके हैं।

श्री कर्टिसका पत्र

श्री कर्टिसने लन्दन 'टाइम्स' के नाम पत्र लिखा है। उस सम्बन्धमें इस पत्र में कुछ विवेचन किया जा चुका है। वह पूरा पत्र 'स्टार' में प्रकाशित हुआ है।[१] उसका अनुवाद देना जरूरी नहीं है। क्योंकि उसकी बहुत-कुछ बातें इतिहास सम्बन्धी हैं। किन्तु उसकी कुछ बातें जानने योग्य हैं। क्योंकि, श्री कर्टिस परिषदके सदस्य हैं और भारतीय प्रश्नके सम्बन्धमें कही गई उनकी बातका हमेशा महत्त्व रहेगा। इसलिए इस विषयमें सभी भारतीयोंको सोचना चाहिए।

श्री कर्टिस कहते हैं :

(१) भारतीय समाज और अंग्रेजोंके कभी भी समान अधिकार नहीं होने चाहिए।
(२) जो कानून बनाया गया है उससे स्पष्टतः जाहिर होता है कि भारतीयों और यूरोपीय लोगोंके समान हक नहीं हैं और यह उचित है।
(३) यह कानून उसी तरह बनाये जानेवाले अन्य कानूनोंका प्रारम्भ मात्र है।
(४) लॉर्ड सेल्बोर्नने जो वचन दिया है कि एक भी नया भारतीय ट्रान्सवालमें नहीं आयेगा, वह निभाया जाना चाहिए।

इसके अलावा और भी बहुत-सी बातें श्री कर्टिसने लिखी हैं। लेकिन उपर्युक्त बातें भारतीय समाजको जगानेके लिए काफी हैं। इन पत्रोंसे मालूम होता है कि ट्रान्सवालका कानून सिर्फ पंजीयन करवानेके लिए नहीं, बल्कि हमारी बेइज्जती करनेके लिए, किसी तरह हमें असमान दिखाने के लिए तथा हमपर गुलामीका टीका लगानेके लिए है। इस पत्र से इतना तो स्पष्ट हो जाता है कि उसके लागू किये जानेपर तथा हमारे उसके सामने झुक जानेपर दूसरे हक दिये जानेके बदले जो भी बचा खुचा है वह भी छीन लिया जायेगा। और वह सिर्फ ट्रान्सवालमें ही नहीं, सारे दक्षिण आफ्रिकामें। अतः यह कानून कैसा है, यह हमें अच्छी तरहसे याद रखना चाहिए। ऐसे घोर परिणामवाले कानूनके सामने एक भी भारतीय घुटने टेके, उससे उसका देश छोड़ देना या आत्मघात करना ज्यादा अच्छा है। श्री कटिसको इस पत्रके सम्पादक श्री पोलकने बहुत सख्त और जबरदस्त उत्तर दिया है। उसका अनुवाद इस जगह देनेका समय नहीं है। किन्तु वह उत्तर अंग्रेजी विभागमें दिया गया है। वहाँ देख लिया जाये।

शाबाश स्टैंडर्टन!

स्टैंडर्ट में भारतीय कौम नये कानूनके विरुद्ध पूरी ताकतसे लड़ रही है। वहाँके नेताओंसे पूछने के लिए 'स्टार' का संवाददाता गया था। उन्होंने उसको साफ जवाब दिया कि भारतीय

  1. देखिए "भेंट : "नेटाल मर्क्युरी को", पृष्ठ ४६८-७० तथा "जोहानिसबर्ग की चिट्ठी", पृष्ठ ४८१-८४।