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जोहानिसबर्गी चिट्ठी


इस घातक चोटको खत्म करनेके लिए मैंने उन्हें तीन सलाहें दी हैं। वे हैं :

१. नया पंजीयनपत्र न लिया जाये।

२. ट्रान्सवालमें भारतीय रहते हैं, जहाँ उन्हें मताधिकार नहीं है। इसलिए किसी कानूनका उन्हें विरोध करना हो तो उसके लिए जेल जानेका निर्णय एकमात्र सहारा है। वे अनुमतिपत्र न लें, देश न छोड़ें, न जुर्माना दें, बल्कि जेल जायें। यही सीधा और अच्छा मार्ग है।

३. ऊपर कहे मुताबिक यदि उन्हें चलना हो तो उन्हें अनुमतिपत्र कार्यालयसे सम्बन्ध तोड़ लेना चाहिए और अपने सगे-सम्बन्धियोंको लिख देना चाहिए कि वे मुद्दती या स्थायी नये अनुमतिपत्रोंकी माँग न करें।

यदि कोई कहे कि ऊपर बताये अनुसार किया जाये, यही तो गोरे चाहते हैं, तो गोरे भले चाहते रहें। इससे तो वही सिद्ध होता है जो मैं हमेशा कहता आया हूँ। अर्थात्, भारतीय समाज ट्रान्सवालका व्यापार नहीं छीनना चाहता, बल्कि ट्रान्सवालमें इज्जतके साथ रहना चाहता है। पेटके लिए भारतीय समाज अपनी इज्जत नहीं खोयेगा।

बहुतेरे अंग्रेज मित्रोंने मुझसे कहा है और मैं मानता हूँ कि सारे भारतीय मेरी यह सलाह कभी नहीं मान सकते। किन्तु तब भी मैं निर्भय हूँ। उस हालत में मैं तो इतना ही कह सकता हूँ कि हम उपर्युक्त कानूनके योग्य हैं। यह निश्चित है कि इस समय हमारी कसौटी हो रही है। अब देखना यह है कि हम कसौटीपर ठीक उतरते हैं या नहीं।

मैं कहता हूँ कि उपर्युक्त स्थितिके विरुद्ध किसीको कुछ कहना नहीं है। बहादुर उपनिवेशियोंको तो उनसे घृणा करने के बजाय उनकी प्रशंसा करनी चाहिए। किन्तु प्रशंसा करें या गालियाँ दें, उसकी परवाह न करते हुए जिस रास्तेको हमने सच्चे दिलसे स्वीकार किया है उससे यदि भटकते हैं तो उसमें मैं हलकापन और पाप समझता हूँ।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १८-५-१९०७

 

४७७. जर्मिस्टनसे जेल जानेवाले

जर्मिस्टनसे हमारे पास ऐसे बहुत-से पत्र आये हैं जिनके लिखनेवाले जेल जानेको तैयार हैं। प्रत्येकने अपनी-अपनी दृष्टिसे जेल जाने के समर्थनमें दलीलें दी हैं। उन सबके लिए यहाँ जगह नहीं है, इसलिए हम उन महाशयोंके नाम नीचे देते हैं : बाबू लालबहादुर सिंह, सुखराम, गंगादीन सरदार, सोनी कानजी, हीराचन्द, सोनी गोरधन कानजी, बाबू गंगादीन, कल्याण गोपाल ठाकोर, बाबू हजूरासिंह और आर॰ एस॰ पण्डित।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १८-५-१९०७