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४७८. ब्रिटिश भारतीय संघको बैठक

गत शनिवार तारीख ११ को ब्रिटिश भारतीय संघकी [कार्यकारिणी समितिकी] बैठक हुई थी। श्री ईस मियाँने अध्यक्ष-पद सुशोभित किया था। श्री कुवाड़िया, क्रूगर्सडॉर्पके श्री काजी, वार्मं बाथ्सके श्री नगदी, श्री सुलेमान अहमद, श्री इमाम अब्दुल कादिर, श्री ए॰ ए॰ पिल्ले, श्री भीखा रतनजी, श्री ए॰ एम॰ भायात, श्री ए॰ एम॰ अस्वात, श्री अमीरुद्दीन, रस्टनबर्ग के श्री सुलेमान इब्राहीम भायात, श्री नायडू, प्रिटोरियाके श्री कचालिया, श्री ए॰ एल॰ गटु, श्री अलीभाई आकुजी, श्री उमरजी सालेजी, श्री टॉमस, श्री बोमनशा आदि सज्जन उपस्थित थे।

श्री गांधीने डर्बनसे प्राप्त सहायताका विवरण सुनाया और कई प्रश्नोंका उत्तर दिया और कहा : "यह समय इतना नाजुक है कि एक-दूसरेपर अवलम्बित रहनेके बजाय प्रत्येक भारतीयको, दूसरे चाहे जो करें, स्वयं अपनी प्रतिष्ठाके लिए और देशके लिए जेलके प्रस्तावपर दृढ़ रहना चाहिए। डर्बन और प्रिटोरियामें अनुमतिपत्र कार्यालयसे सम्बन्ध-विच्छेद करनेकी आवश्यकता है। नये अनुमतिपत्र से किसीको [उपनिवेशमें] नहीं आना चाहिए।"

श्री कुवाड़ियाने जोशीला भाषण करते हुए प्रस्ताव रखा कि :

अवैतनिक मन्त्री अनुमतिपत्र-कार्यालयसे पत्रव्यवहार बन्द रखने के लिए प्रत्येक स्थानको लिख दें। वे बम्बई और अन्य स्थानोंको तार भेज दें कि ट्रान्सवाल आनेवाले लोग फिलहाल रुक जायें। कोई भी व्यक्ति दस अँगुलियोंकी छाप न दे, और गाँव-गाँवमें सभाएँ करके प्रत्येक व्यक्तिको समझाया जाये कि नये कानूनके सामने कोई न झुके।

श्री अस्वातने प्रस्तावका समर्थन किया और वह सर्वसम्मति से स्वीकृत हुआ। सभाका विसर्जन करते हुए श्री ईसप मियाँने कहा :

जेलके प्रस्तावपर दृढ़ रहनेसे किसीको डरना नहीं चाहिए। जेल जाना हमारे लिए सम्मान पानेके तुल्य है। हम नये कानूनको मान लेंगे तो कुछ अधिकार मिल जायेंगे, इस लालच में फँसना नहीं चाहिए। लॉर्ड मिलनर और अन्य अधिकारियोंने बहुतेरे वचन दिये थे, किन्तु उनमें से एकका भी पालन नहीं किया गया। इसलिए जबतक हम स्वयं परिश्रम नहीं करते और अपनी हिम्मत नहीं दिखाते तबतक कुछ भी लाभ नहीं हो सकेगा।
[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १८-५-१९०७