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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


माँ-साहिबाकी पंक्ति में बैठे हैं और काले और भारतीय लोग गाँवकी भौजाईकी पंक्ति में हैं। ऐसी गन्दी स्थिति में मेरी सलाह है कि किसी भी भारतीयको हरगिज अनुमति नहीं लेनी चाहिए। यह गाँवकी भौजाईकी स्थिति रहेगी या जायेगी, यह तो हमपर निर्भर है।

पहली बस्तियाँ

नये 'गज़ट' में यह भी देखता हूँ कि क्रिश्चियाना, हीडलबर्ग, पॉटजीटर्सरस्ट, रस्टनबर्ग, फॉक्सट्रूमकी बस्तियाँ वहाँकी नगरपालिकाओंके सुपुर्द कर दी गई हैं। और रुज़ीनिकल, लेड्स-डॉर्प, आमर्सफुर्ट वगैरह जगहोंकी बस्तियाँ रद कर दी गई हैं।

न्यू क्लेअरके धोबी

न्यू क्लेअरके धोबियोंपर मुसीबत[१] आई थी, उसका जवाब 'संडे टाइम्स' के सम्पादकके नाम इस पत्रके सम्पादकने दिया है। उसमें बताया है कि श्री "वलचर" ने 'संडे टाइम्स' में जितने इल्जाम लगाये हैं वे सब झूठे हैं। सम्पादकने लिखा है कि जिस कुण्डमें से पानी बहता रहता है वह खराब नहीं है। जिसमें कपड़े धोये जाते हैं उसका पानी हमेशा दो बार बदला जाता है। भारतीय धोबी किसीको ठेका नहीं देते। उनके घर साफ हैं, यह सब नगरपालिकाने जाँच लिया है। भारतीय धोबियोंके पास बहुत-से नामी गोरोंके प्रमाणपत्र हैं। इसलिए सम्पादकने लिखा है कि 'संडे टाइम्स' के लेखकको माफी मांगनी चाहिए। इसके उत्तरमें 'संडे टाइम्स' का सम्पादक लिखता है कि 'इंडियन ओपिनियन' के सम्पादकका लेख प्रभावशाली तथा मानने योग्य है। सम्पादक उस लेखका जवाब देना चाहता है, लेकिन लिखता है कि "वलचर" साहब बीमार हैं, इसलिए एक-दो हफ्तोंकी देर होगी। इस जवाबसे मालूम होता है। 'संडे टाइम्स' की अभी तो हार हो गई है। जिन्हें मालूम न हो उनकी जानकारीके लिए मुझे सूचित करना चाहिए कि "वलचर' एक उपनाम है और उसका अर्थ फाड़कर खा जानेवाला गिद्ध पक्षी होता है। इस मनुष्यरूपी गिद्धने भारतीय धोबीको खा जाना चाहा था, किन्तु यह मानना गलत न होगा कि 'इंडियन ओपिनियन' के सम्पादकने उस प्राणीको इसकी झपटसे बचा लिया है ।

बहादुर रिच

यहाँके अखबारोंमें ऐसा तार आया है कि श्री रिचने लन्दनके प्रसिद्ध अखबार 'टाइम्स' के नाम पत्र लिखा है। उसमें श्री कटिसके लेखकी[२] धज्जियाँ उड़ा दी हैं। भारतीय समाजका दृढ़ता के साथ बचाव किया है और सिद्ध कर दिया कि चैमने साहबकी रिपोर्ट भारतीयोंके पक्षमें है। श्री रिच जो काम करते हैं उसकी तुलना नहीं की जा सकती। जान पड़ता है, रात-दिन वे इसीका रटन किया करते हैं, और हमारा समर्थन करनेका जब भी मौका आता है उसे वे जाने नहीं देते। अधिकतर भारतीय शिक्षितोंको उनका अनुकरण करना है। श्री रिचको समितिकी ओरसे जो कुछ दिया जाता है उससे चौगुना भी यदि हम किसी दूसरेको दें तो भी यह निश्चित कहा जा सकता है कि वह श्री रिचके बराबर काम नहीं कर सकेगा।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २५-५-१९०७
  1. देखिए "जोहानिबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ४६०।
  2. देखिए "जोहानिसबर्गकी चिट्ठी", पृष्ठ ५०१-२।