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४८३. भाषण : चीनियोंको सभामें[१]

[जोहानिसबर्ग
मई २६, १९०७]

अनाक्रामक प्रतिरोधियोंके रूपमें चीनी

. . .गत रविवारको ट्रान्सवाल चीनी संघके भवनमें एक विशाल तथा प्रतिनिध्यात्मक सभा हुई। उस सभा में विचार किया गया कि नये एशियाई विरोधी कानूनके सम्बन्धमें अगला कदम क्या होना चाहिए। कैंटोनीज क्लबके अध्यक्ष श्री क्विनने अध्यक्षता की और श्री मोहनदास करमचन्द गांधीने भाषण दिया। श्री गांधी स्थितिपर प्रकाश डालनेके लिए विशेष रूपसे आमन्त्रित किये गये थे। उन्होंने संक्षेपमें बताया कि जैसा एशियाई-विरोधी दल अक्सर कहा करता है—और अनजान आम जनता उसकी हाँ-हाँ मिलाया करती है, वैसी कोई अभिवृद्धि उन एशियाइयोंकी सुरक्षामें नये कानूनसे नहीं होती, जो उचित तरीकेसे ट्रान्सवालमें आकर रह रहे हैं। दरअसल तो इससे उनकी वह सारी व्यक्तिगत स्वतन्त्रता समाप्त हो जाती है जो गम्भीर शाही प्रतिज्ञाओंके अन्तर्गत उन्हें उपलब्ध है। यह उनकी व्यक्तिगत स्वतन्त्रतापर रोक लगा देता है। इसे किसी भी सभ्य देशकी आत्माभिमानी जनता स्वीकार नहीं कर सकती। ट्रान्सवालमें एशियाई अपने अधिकारोंकी रक्षा एक ही गौरवपूर्ण तरीकेसे कर सकते हैं। वह यह कि वे पुनः पंजीयनको लागू करनेवाली अनिवार्य धाराओंकी उपेक्षा कर दें और कानूनसे उपलब्ध होनेवाली सबसे बड़ी सजा, अर्थात् कारावासके दण्डके भागी होनेके लिए अपने आपको तैयार कर लें और साथ ही अनुमतिपत्र कार्यालयका बहिष्कार कर दें. . . ।[२]

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १-६-१९०७
  1. यह "जोहानिसबर्ग की टिप्पणियाँ" से लिया गया है। इंडियन ओपिनियनका यह स्तम्भ हेनरी एस॰ एल॰ पोलफ "हमारे जोहानिसबर्ग संवाददाता" के नामसे नियमित रूपसे लिखा करते थे।
  2. चीनियोंने भारतीयोंकी सितम्बर १९०६ की आम सभाके चौथे प्रस्ताव तथा अप्रैल १९०७ की आम सभाके दूसरे प्रस्तावके समर्थनका वादा किया था और ट्रान्सवाल एशियाई पंजीयन अधिनियम जबरन लागू किया जानेपर भारतीयोंकी तरह जेल जानेका ऐलान किया था। देखिए "जोहानिसबर्ग की चिट्ठी", पृष्ठ ४५३।

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