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४८४ पत्र : 'स्टार' को

जोहानिसबर्ग
मई ३०, १९०७

[सेवामें
सम्पादक
'स्टार'
जोहानिसबर्ग
महोदय,

जनरल बोथाके आगमन और इस तथ्यसे कि एशियाई पंजीयन अधिनियम शाही मंजूरी मिलने के बावजूद, अभीतक साम्राज्य सरकार और स्थानीय सरकारके बीच पत्र-व्यवहारका विषय बना हुआ है, मुझे एक बार और आपके और आपके द्वारा उपनिवेशियोंके सद्भावको प्रेरित करने का साहस होता है। एशियाई विरोधी दलको, जो वह चाहता था, प्राप्त हो चुका है; इसलिए क्या अब भी किसी न्यायसंगत समझौते तक पहुँचना असम्भव है और भारतीयोंको अविश्वसनीय तथा चोरी-चबाड़ीकी वृत्तिवाला समझा जानेसे बचाया जा सकता है? यह अधिनियम अभीतक 'गज़ट' में प्रकाशित नहीं हुआ है और जबतक सरकार न चाहे तबतक ऐसा करने की जरूरत भी नहीं है। इसलिए मैं सुझाव देता हूँ कि इसके 'गज़ट' में छपने से पहले नये अनुमतिपत्रोंके लिए आपसमें एक पत्रक (फार्म) तय किया जा सकता है। और उसके अनुसार जिन भारतीयों तथा अन्य एशियाइयोंके पास सही कागजात हों वे वापस लेकर बदले में उनका नये सिरे से पंजीयन किया जा सकता है। यदि उस समय सब एशियाई अपने कागजपत्र खुद ही दे दें तो उन्हें अधिनियम द्वारा प्रस्तावित अपमानका शिकार होने का कोई मौका नहीं आ सकता। फिर भी, यदि उपनिवेशमें ऐसे एशियाई हों जो अपने कागजपत्र पेश न करें तो अधिनियमको 'गज़ट' में तुरन्त प्रकाशित किया जा सकता है और एक छोटे-से विधेयक द्वारा उनपर लागू किया जा सकता है। इस तरह जो लोग अनुमतिपत्रोंके सही मालिक हैं और ईमानदार हैं वे, उन लोगोंसे जो अपराधी हैं, अपने-आप अलग हो जायेंगे।

अगर आप यह न सोचते हों कि कानूनका मंशा अनुमतिपत्रोंका गैरकानूनी व्यापार रोकना नहीं, बल्कि खुल्लम-खुल्ला और निर्भीक होकर भारतीयों और दूसरे एशियाइयोंका अकारण अपमान करना है, तो मैं नहीं समझता कि आपको इस सुझावमें कोई दोष दिखाई दे सकता है। ऐसी कोई भी घोषणा होनेसे पूर्व मैं आपको लॉर्ड ऐम्टहिलके निम्नलिखित उद्गारोंकी याद दिला देना चाहता हूँ :

यह ऐसा मामला नहीं है जो केवल हमारे सम्मानसे सम्बद्ध है। हम तो अपने भारतीय नागरिक बन्धुओंसे प्रतिज्ञाबद्ध हैं। यह प्रतिज्ञा ताजकी गम्भीर घोषणा, हमारे राजनीतिज्ञोंके ऐलानों और साम्राज्यके उस महान देशकी शासन-नीतिसे व्यक्त होनेवाली समस्त पद्धतिपर आधारित है। और वह यह है कि हम भारतीयोंके साथ, शब्दके प्रत्येक अर्थ में, बन्धु-नागरिकके समान व्यवहार करेंगे। हम उन्हें इस साम्राज्यके नागरिक