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२७. शिष्टमण्डलकी यात्रा-४

होटल सेसिल
लन्दन
अक्तूबर २६, १९०६

हम मदीरा पहुँचनेवाले थे, तबतकका विवरण दिया जा चुका है।

मदीरा

हम १६ अक्तूबर, मंगलवारको सवेरे मदीरा पहुँचे। मदीरा बन्दरपर आम तौरसे सभी यात्री चहलकदमीके लिए चले जाते हैं। वैसे ही हम भी गये। टापू बहुत ही सुहावना है। वह एक ऊँची टेकड़ीपर बसा हुआ है। आबादी सीढ़ी-दर-सीढ़ी करीब २,५०० फुटकी ऊँचाई तक गई है। सारा टापू हरा-भरा है और ऐसी जगह शायद ही कहीं दिखाई देती है जहाँ कुछ-न-कुछ बोया हुआ न हो। टापू-भरमें पक्की सड़कें हैं। उनपर पहियेवाली गाड़ियाँ नहीं चलाई जातीं। फिसलनेवाली गाड़ियाँ चलाई जाती हैं। उतारपर ये गाड़ियाँ बड़ी तेजीसे नीचे जाती हैं, फिर भी कोई जोखिम नहीं रहती। वे इतनी हलकी होती हैं कि उन्हें एक व्यक्ति सिरपर उठा सकता है। यह टापू पुर्तगीज लोगोंके अधिकारमें है। और वहाँ केवल पुर्तगीज़ लोगोंकी आबादी दिखाई देती है। किसी भारतीयका चेहरा नहीं दिखाई दिया। टापूका दृश्य बहुत ही सुन्दर और मनोरम है।

लन्दन पहुँचे

हम २० तारीखको सवेरे साउथैम्प्टन बन्दरपर पहुँचे। वहाँ श्री वेस्ट और उनकी बहनसे मुलाकात हुई। वहाँसे रेलगाड़ीमें यात्रा करनी होती है। 'ट्रिब्यून' नामक प्रसिद्ध पत्रका संवाददाता हमसे मिलने जहाजपर आया था। उसे हमने सारी हकीकत कह सुनाई। उसने अपने अखबार में सोमवारको सारा हाल प्रकाशित किया। वहाँसे गाड़ी दोपहरके १२-३० बजे वॉटरलू पहुँची। उस समय श्री रिच, श्री गॉडफे, श्री जोज़ेफ रायप्पन तथा श्री हेनरी पोलकके पिता 'मॉर्निंग लीडर' के संवाददाताको लेकर आये थे। उन्हें सारा हाल सुनाया गया। 'मॉर्निंग लीडर'ने सोमवारको सवेरे जो विवरण प्रकाशित किया,[१] वह 'ट्रिब्यून 'से ज्यादा अच्छा था।[२] इस प्रकार हमारे विलायत पहुँचनेके पहले ही हमारा काम शुरू हो गया। श्री रिचने हमें इंडिया हाउसमें ठहरानेकी व्यवस्था की थी। इसलिए हम वहाँ गये। इंडिया हाउसके विवरणके लिए इस सप्ताह जगह नहीं है, इसलिए अगले सप्ताह देने की बात सोच रहा हूँ।[३] वहाँ भोजन करके हम तुरन्त लन्दन भारतीय समितिकी बैठकमें शामिल होनेके लिए गये जहाँ श्री दादाभाई नौरोजीके दर्शनका लाभ मिला। उन्होंने हमारा स्वागत किया और फिर सोम-

  1. देखिए "भेंट: 'मॉर्निंग लीडर' को ", पृष्ठ २-४।
  2. देखिए "भेंट: ट्रिब्यून' को", पृष्ठ १-२ ।
  3. देखिए "शिष्टमण्डलकी यात्रा-- ५", पृष्ठ ८९-९२।