पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 6.pdf/६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वारको मिलना तय हुआ। रविवारका दिन भारतीय युवकों और श्री पोलकसे मिलनेमें गया। रातको पण्डित श्यामजी कृष्णवर्मासे मिले। उनसे रातके एक बजे तक बातचीत हुई।[१]

सोमवारसे शुक्रवार

यहाँ एक सभा करने लायक[२] भी फुरसत नहीं रहती। इस पत्रके लिखते समय रातके ग्यारह बज रहे हैं। सर मंचरजी, सर विलियम वेडरबर्न, सर हेनरी कॉटन, श्री कॉटन[३], श्री हॉल, श्री रॉबर्ट्सन, श्री अराथून[४] श्री स्कॉट आदि सज्जनोंसे मुलाकात हुई है। इरादा यह है कि यहाँके विभिन्न पक्षोंके लोग हमारे साथ चलकर लॉर्ड एलगिनसे हमारी मुलाकात करायें और उनसे बातचीत करके हमें अपना पूरा सहारा दें। इसमें श्री दादाभाई नौरोजी, सर मंचरजी भावनगरी, श्री हैरॉल्ड कॉक्स, न्यायमूर्ति श्री अमीर अली, सर जॉर्ज बर्डवुड शामिल हैं। बहुत करके अगले सप्ताह मुकलात होना सम्भव है। हम अपने पहुँचनेकी सूचना लॉर्ड एलगिनके पास भेज चुके हैं और उनका उत्तर भी आ गया है।

'टाइम्स' का संवाददाता

'टाइम्स' के संवाददाताने, मानों साठ-गाँठसे ठीक सोमवारको 'टाइम्स' को तार दिया है कि ट्रान्सवालमें बहुतसे भारतीयोंने प्रवेश किया है। ये लोग यदि इसी तरह प्रवेश करते रहेंगे तो गोरोंको बोरिया-बिस्तर बाँधना पड़ेगा। नये कानूनसे इन लोगोंको जमीन वगैरहके हक मिलते हैं, इसलिए आशा है कि लॉर्ड एलगिन कानूनको मंजूर कर लेंगे। यदि उन्होंने मंजूरी नहीं दी तो गोरोंको बहुत बुरा लगेगा। संवाददाताने यह भी आशा की है कि उस कानून के सम्बन्ध में सर रिचर्ड सॉलोमन गोरोंके पक्षका समर्थन करेंगे। आगे वह लिखता है कि शिष्टमण्डलमें श्री गांधी नामक एक होशियार वकील हैं। ट्रान्सवालमें भारतीयोंको प्रवेश दिलानेवाले वही हैं और उन्होंने इससे पैसा इकट्ठा किया है। इस प्रकार वहाँसे आँखों में धूल झोंकनेवाला इस तरहका तार भेजा गया है। इसका उत्तर[५] हमने उसी दिन 'टाइम्स' में दे दिया था। उसके आवश्यक अंश 'टाइम्स' ने गुरुवारके अंकमें दिये हैं और शुक्रवारके 'इंडिया' में पूरा पत्र प्रकाशित हुआ है। उत्तरमें हमने यह बताया है कि यदि कुछ भारतीय सर्वथा अनुमतिपत्रके बिना आये हों तो उनकी संख्या कम है। उन्हें निकाल बाहर करनेकी सत्ता वर्तमान सरकारके पास है। नया कानून अत्याचारपूर्ण है। कोई भारतीय यह नहीं चाहता कि सारा भारत दक्षिण आफ्रिकामें आ बसे। कोई यह भी नहीं चाहता कि गोरोंका सारा व्यापार छिन जाये। अपने इस इरादेकी सचाई बतलानेके लिए हम केप या नेटालके कानूनके समान कानून मंजूर करनेको तैयार हैं। लेकिन भारतीयोंको जमीन वगैरहके हक मिलते ही चाहिए।

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १-१२-१९०६

  1. गांधीजीने उनसे अनेक बार चर्चा की। देखिए "शिष्टमण्डलकी यात्रा–५ " पृष्ठ ८९-९२ ।
  2. मूलमें : "एक मीटिंग जेटली फुरसद"।
  3. एच० ई० ए० कॉटन, इंडिया के सम्पादक।
  4. , एशिया क्वार्टरली रिव्यूके सम्पादक और पूर्व भारत संघके अवैतनिक मंत्री। अन्यत्र ए० डब्ल्यू० अराधून, सी० डब्ल्यू० अराधून, डब्ल्यू० एच० अराथून और डब्ल्यू० अराथूनके नाम पत्र भेजे गये हैं या उनका उल्लेख किया गया है। ये सम्भवतः एक ही व्यक्तिके नाम हैं।
  5. देखिए "पत्र: 'टाइम्स' को ", पृष्ठ ४-६।