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२८. कथनीसे करनी भली[१]

[अक्तूबर २६, १९०६]

लन्दनके अखबारोंमें इस समय दो बातोंकी बड़ी चर्चा हो रही है। एक यह है कि साबुनवालोंने अमेरिका के समान एका करके साबुनकी कीमत बढ़ानेका निर्णय किया है। यह बात व्यापारियों तथा लोगोंको अच्छी नहीं लगी। किन्तु उसके लिए उन्होंने न सरकारसे मदद माँगी, न साबुनवालोंसे विनती की; बल्कि काम शुरू कर दिया। उन्होंने साबुनवालोंको सूचना दी कि हमें चाहे जितना नुकसान हो, हम आपका साबुन नहीं लेंगे। नतीजा यह हुआ है कि सनलाइट साबुनवाले लीवर ब्रदर्स, जो एक रतल साबुनमें केवल १५ औंस वजन देते रहे हैं, अब १६ औंस देंगे। मतलब यह है कि कथनीसे करनी भली होती है। व्यापारियों के शोर मचानेके बजाय प्रत्यक्ष कामने बहुत ही बल दिया है।

दूसरा उदाहरण इससे महत्त्वपूर्ण है। इस समय विलायतमें औरतें मताधिकार माँग रही हैं और सरकार उन्हें वे अधिकार नहीं देती। अतः, वे लोकसभा में जाकर सदस्योंको परेशान करती हैं। उन्होंने अर्जियाँ लिखीं, पत्र लिखे, भाषण दिये, लेकिन उससे उनका काम नहीं बना। अतएव अब उन्होंने दूसरे उपाय अपनाये हैं। लोकसभा बुधवारको शुरू हुई। इन बहादुर औरतोंने वहाँ जाकर अपने अधिकार माँगना शुरू किया। कुछ उपद्रव भी किया। इसपर गुरुवारको उनपर मुकदमा चलाया गया। सभीपर पाँच-पाँच पौंड जुर्माना किया गया। किन्तु उन्होंने वह रकम देने से इनकार किया; इसपर मजिस्ट्रेटने सबको जेलकी सजा दी; और इस समय वे सब जेलमें हैं। अनेकोंको तीन तीन महीने की सजा मिली है। ये सभी महिलाएँ ऊँचे तबकेकी हैं तथा कुछ तो बहुत पढ़ी-लिखी हैं। एक तो उन प्रसिद्ध स्वर्गीय श्री कोबडनकी लड़की है जिन्हें लोग पूजते हैं। वह अपनी बहनोंके लिए जेल भोग रही है। दूसरी महिला श्री लॉरेन्सकी पत्नी है। एक महिला एलएल० बी० हैं। उसकी गिरफ्तारी के दिन यहाँ बड़ी सभा हुई थी। उसमें इन बहादुर औरतोंके निर्णयको बल देनेके लिए ६५० पौंडका चन्दा इकट्ठा हुआ; और श्री लॉरेन्सने वचन दिया कि जबतक उनकी पत्नी जेलमें है तबतक वे रोजाना १० पौंड देते रहेंगे। कोई-कोई इन बहनोंको पागल कहते हैं। पुलिस बल प्रयोग करती है। मजिस्ट्रेट कड़ी नजरसे देखता है। श्री कोबडनकी बहादुर लड़कीने कहा कि "जिस कानूनको बनाने में मेरा हाथ नहीं है उसे मैं कदापि नहीं मानूँगी, न उस कानूनपर अमल करनेवाली कचहरीका ही हुक्म मानूँगी। मुझे जेल भेजोगे तो जेल भोगूँगी, किन्तु जुर्माना कभी नहीं दूँगी, न जमानत ही दूँगी। जो प्रजा ऐसी औरतोंको जन्म देती है और जिस प्रजाको ऐसी औरतें जन्म देती हैं, वह क्यों न राज्य करे? आज सारी विलायत उनपर हँस रही है। चन्द गोरे उनके पक्ष में हैं। किन्तु इससे बिना घबराये वे अपना काम दृढ़तासे किये जा रही हैं। उन्हें अधिकार प्राप्त होकर रहेंगे, विजय मिलेगी, क्योंकि "कथनी से करनी भली"। उनपर हँसनेवाले भी आज दाँतों तले अँगुली दबा रहे हैं। जब औरतें इतनी बहादुरी दिखा रही है तब इस संकटके समय ट्रान्सवालके भारतीय अपना कर्तव्य भूलकर

  1. गांधीजीने श्री पोलकके नाम लिखे अपने पत्रमें यह लेख भेजनेका वादा किया था। देखिए पृष्ठ १९-२२।